प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी [खण्ड २] | Pradhanmantri Atal Bihari Vajpayee [Khand 2]

Pradhanmantri Atal Bihari Vajpayee [Khand 2] by अटलबिहारी वाजपेयी - Atalbihari Vajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देश हित्त को ध्यान में रखें मेर देशवासियो, आपने पांच वर्ष के लिए अपने प्रत्तिनिधियो को लोकसभा में भेजा था। वे केवल 14 महीनों में फिर से आपके पास आ रहे हैं। इसका कारण आपको भी मालूम है और मुझे भी, क्योकि यह पूरा नाटक खुले मंच पर खेला गया है। सरकार को गिराने का कोई मुद्दा ही नहीं था। लोकसभा मे बहस मे और बाहर भी मेरे साथियों और मैंने बार-बार पूछा कि आखिर क्‍या मुद्दा है, जिस पर गलत आचरण के लिए सरकार इतनी अधिक दोषी है कि उसे गिरा दिया जाए और देश को अंधे कुंए में ढकेल दिया जाए? मैंने घटो बडे घैर्यपूर्वक बहस सुनी, आपने भी सुनी होगी; एक भी नई बात नहीं कही गई, ऐसा एक भी गंभीर मुद्दा नहीं उठाया गया, जिससे पता चलता कि क्या किया जाना चाहिए । जो काम कर रहे थे, उन्हे उखाड फेकने के लिए कोई मुदा नहीं था। यह तो एक सोची-समद्यी चाल धी, जो उल्टी पड गई थी। सरकार ठीक से काम कर रही थी। यह भारत को मजबूत बनाने के लिए ऐसे कदम उठा रही थी, जिनसे पहले की सरकारे बचती रही थीं। जब दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाएं अब तक के सबसे गंभीर संकट का सामना कर रही थीं, तब सरकार ने हमारी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने, बचाने के लिए कदम उठाए। उस तूफान से बचा लेने के बाद, सरकार ने भारत को समृद्ध बनाने के कदम उठाए। देश में शांति थी। आतंकवाद पर अंकुश लगा दिया गया था। कभी-कभी मुझे हैरानी होती है कि जब कोई मुद्दा नहीं था, तब क्या कहीं इसलिए तो सरकार को नहीं गिरा दिया गया, कि यह भारत को मजबूत और समृद्ध बनाने के लिए हर संभव कदम उठा रही थी? जब बहस आरंभ हुई तो मैंने पूछा, आपके पास विकल्प क्‍या है? नई सरकार का नेतृत्व कौन करने जा रहा है? उस सरकार मे कौन-कौन तोग होगे? मेरे सवालों को दरकिनार कर दिया गया | दावा किया गया कि पांच मिनट में हम विकल्प पेश कर देंगे । एक मिनट भी नहीं लगेगा, यह कहा गया। सात दिन बीत गए, और आप लोगों ने देखा कि क्या हुआ। लोकसभा भंग होने के बाद राष्ट्र के नाम संदेश, नई दिल्ली, 29 अप्रैल 1999




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