भावनासार | Bhavnasaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
501
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अर्थः विष्टु, शंकर, यमराज, रक्षा, सुरेन्द्र, सूथे, चन्द्रमा, भगवान् बुद्ध अथवा
सिद्ध चाहे कोई भी क्यों न ह, परन्तु जो रागद्वेष रूपी विष, दुःख, मोह शोकादिक से
रहित होकर सत्व अनुकम्पा आदि गुणों से सुसंस्कृत है (ऐसे सदूगुण सम्पन्न वीतराग
भगवान को सदा नमस्कार है।
भव ब्रीजांङ्कर जलदा रागाद्याः, चेय भुपागता यस्य।
अष्मा না विष्णुर्वा, हरो जिनोवा नमस्तस्मे ॥ |
भव के बीज रूपी अंकुर को जलाकर जिसने रागादिक का क्षय कर दिया है
वह चाहे ब्रह्मा दो चाहे विध्णु हो, रुद्र हो, जिन हो, अथवा शंकर दो उस के किए
नमरकार हो। कहा भी है--
ज्ुत्पिपासा जरातंक, जन्मान्तक भयस्मयाः |
न राग देष मोहाश्च, यस्याप्तः सप्रकीत्यते ॥
छुधा (भूख), प्यास, जन्म, जरा, विस्मय, आरत, खेद, रोग, शौक, मद, भोह,
भय, निद्रा, चिन्ता, स्वेद, रागद् ष, मरण ये १८ दोष है । दन १८ दोष कर रहित वीत.
राग भगवान् हेते ই!
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[1017607) 110050 ल्वा कहा, 20007006500 1060931015
561८४, 01, ‰&९, 05656, [0৩৯0১ 65505 0075 १४४७९, एप,
11000120706 अन्द), 3170 2700 ९6811685 1658,
पसीना, रज अर्थात् वाह्य कारणों से शरीर में उत्पन्न हुआ भल रक्त नेत्र और
कटाक्ष रुप वाणों का छोड़ना आदि शरीर में होने वाले संपूर्ण दोषों से रहित, समचतुरख्र
संस्थान, वश्वृषभ नाराच संहनन, दिव्य सुगंध मयी सदैव योग्य प्रमाण रूप नख और
रोमवाले, आभूषण आयुध, वस्त्र ओर भय रहित सोम्य मुख आदि से युक्त विशिष्ट शरीर
को धारण करने वाले, देव मनुष्य तियेच ओर अचतन क्रत चार प्रकार के उपसर्ग छुधा
आदि वाईस परीषह, रागद्रेषादि कषाय श्रौर इन्द्रिय विषय आदि सम्पूर्ण दोषों से रहित
एक योजना के भीतर दूर अथवा समीप बैठे हुए अठारद्द मद्राभाषा और सात सौ लघु
भाषा समेत ऐसे तिय॑च देव ओर मनुष्यों की भाषा के रूप में परिणत होने वाली तथा
स्यूनता ओर श्रधिकता से रहित मधुर, मताहर, गंभीर और विशद ऐसी भाषा के सतिशय
को प्राप्त भवन वासी, व्यन्तर ज्योतिष ओर कल्पवासी देवों के इन्द्रौ ने विथाधर चक्रवती
बलदेव, राजाधिराज महाराज, अर्धमण्डीलक, महा मण्डलीक राजाओं से इन्द्र, अग्नि,
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