हिन्दी पद संग्रह [भाग १०] | Hindi Pad Sangrah [Bhag 10]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) श्रादिनाथ के स्तत्रन के रूप में लिखा हुआ इनका एक पद बहुत सुन्दर एव परिष्कृत भाषा में है। इसी तरह १६ वीं शताब्दी में होने वाके छीहल, पूनो, बूचराज, आदि कवियों के पद भी उल्लेखनीय हें। प्रग्तुत मप्र में हमने सवत्‌ १६०० से लेकर १६०० तक होने वाले कवियों के पदो का सम्रह किया है| वैसे तो इन ३०० रपों में सेकडों ही जैन कबि हुये हैं जिन्होंने हिन्दी में पद साहित्य लिखा है। अ्रभी हमने राजस्थान के शास्त्र भगडारों की ग्र थ सूची चतुर्थ भाग ” में जिन भ्र थो को सूची दी है उनमें १९४० से भी श्रघिक जैन कवियों के पद उपलब्ध हुये हैं किन्तु पद्‌ सग्रह में जिन कवियों के पदों का सकल्लनन किया गया है वे' श्रपने युग के प्रति- निधि कवि हैं । इन कवियों ने देश में आध्यात्मिक एवं साद्ठित्यिक चेतना को जाएत किया था और उसके प्रचार में अपना पूरा योग दिया था | १३वीं शताब्दी में श्रीर इसके पश्चात्‌ हिन्दी जैन साहित्य में श्रध्यात्मवाद की जो लहर दोड गयी थी इस लहर के प्रमुख प्रवर्तकं ई कविवर रूपचन्द एव बनारसीदास | इन दोनों के साहित्य ने समाज में जादू का कार्य किया | इनके पश्चात्‌ होने वाले अधिकाश कवियों ने श्रध्यात्म एवं भक्ति धारा पे श्रपने पद्‌ साहित्यको प्रवाहित किया | भक्ति एवं अ्रध्यात्म का यह क्रम १६वीं शताब्दी तक उसी रूप में अथवा कुछ २ रूप परिवर्तन के साथ चलता रहा | + श्री मद्दाबीरबी सैर के जैन साहित्य शोध सस्थान दीश्रोर ते प्रकाशित




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