स्वयम्भू - स्तोत्र | Swayambhu Stotra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ ममन्तभद्र-मारता
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| उत्पत्ति अथवा ज्ञप्ति--नहीं बनती। ( केसे नहीं बनती, यह बात
% 'सुयुक्तिनीत-तत््व” को स्पष्ट करते हुए अगली कारिकाओंमें वतलाई गई है)।'
4 अनेकमेकं च तदेव तत्वं <
| भेदाऽन्वयज्ञानमिदं हि मत्यम् ।
† म्रषोपचारोऽन्यतरस्य लोपे
५ तच्छषलोपोऽपि ततोऽनुपाख्यम् ॥२२॥
£ वह सुयुक्तिनीत बस्तुतत्त्व भेदाउभेद-ज्ञानका विषय है ओर
अनेक तथा एकरूप है--भेदज्ञानकी-पर्यायकी-दृष्टिस अ्नेकरूप हैं
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‡ तो बरही अभेदशानकी-द्रव्यकी-दश्सि एकरूप हे--ओर यह वस्तुको ‰
। भेद-अभेदरूपसे अहण करनेवाला ज्ञान ही सत्य है--प्रमाण है।
४ जो लोग इनमेंसे एकको ही सत्य मानकर दूसरेमें उपचारका |
| व्यवहार करते हैं वह मिथ्या हैः क्योंकि ( दोनोंका परम्पर अबिना- ६:
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माव-सम्बन्ध हेनेमे ) दोनोँमसे एकका अभाव माननेपर दृसरेका
भी अभाव हा जाता है। दोनोंका अभाव हा जानेसे बस्तुतत्व
अनुपाख्य-निःम्बभाव हो जाता है--श्रोर तब वह न तो एकरूप
रहता है और न अनकरूप । स्वभावका श्रभाव होनस उसे किसी रूपमें
कद नहीं सकते, ओर इससे सम्पूर्ण व्यवहारका ही लोप ठहसता है ।'
सतः कथश्वित्तदसल-शक्तिः
खे नास्ति पुष्पं तरुषु प्रमिद्धम् ।
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सवे-स्वमाव-्युतपग्रमाशं
स्व-वाग्विरुद्रं तव दष्टितोऽन्यत् ॥ २३ ॥
जो सत है-स्वद्रव्य-तेत्र-काल-भावसे विद्यमान है- उसके
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