प्राङ्मौर्य बिहार | Pranmaurya Bihar

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Pradmaurya Bihar by डॉ. देवसहाय त्रिवेद - Dr. Devasahay Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय भोगोलिऊ व्यवस्था आधुनिक बिद्दार की कीई प्राकृतिक सीमा नहीं दै। इसको सीमा सम्रयानुत्गार बदलती रही है। प्राचीन कात्त में इसके अनेह राजनीतिक संत्र थे। यथा--ऊउष, मगध, करे वरणाड, अंग, विदेह, वेशाली और मत्त। भौगोलिक दृष्टि स से तीन भाग स्ट हैं-.उत्तर बिदार की निम्न आदर नूमि, दक्तिश दिद्वार की शुष्क भूमि तथा उससे भी दक्तिए को उपत्यका । इन भूमियों के निवाध्तियों की बनावड, भाषा ओर प्रकृति में भी भर है। आधुनिक बिद्दार के उत्तर में नेपात, दक्षिण में उड़ीसा, पूर्व में वंग तथा पश्चित्र में उत्तरददेश तथा मध्यप्रदेश हैं । बिहार प्रान्त का नान पटना जिले के बिहार” नगरके कारण पड़ | पातत रजा के काल में उदन्तपुरी,'* जहाँ आजकल बिहारशरीफ है, मगध को प्रमुव नगरी थी। सुषलमान लेखकों ने असंख्य बोद्ध-विद्वारों के कारण इस “उदन्तपुरी? को बिदह्ारर लिखना आरंभ किया। इस नगर के पतन के बाद मुस्लिम आक्रमणऊारियों ने पूव देश के प्रत्येक पराजित नगर को बिद्दार में ही सम्मिलित करना आरंभ क्रिया। बिहार्‌ प्रान्त का नाम उवथम “तबाकृत-ए* नाधिरी* में मिलता है, जो प्रायः १३२० वि० सं> के लगमग लिखा गया। कालान्तर में मुस्लिम लेतकों ने इस प्रदेश की उबरता और छुबद जलवायु के कारण इसे निरन्तर वसन्त का प्रदेश सम फष़र बिद्वार [अद्वार (फारती)- वसन्त| समझा । महाभारतः 1. तिब्बती भाषा में श्रोडन्त, ओटन्त भोर उद्डुयन्त रूप पाये जाते हैं। चौनौ में इसका रूप झोतन्‍त होता हे, जिसका अथ उस्च शिखरवाज्ञा नगर होता है। दूसरा रूप है उद्णडपुरी -जदाँ का दण्ड ( राज दृश्ड ) उठा रहता है भर्थात्‌ राजनगर । इस सुमाव के लिए में डा० सुविमत्नचन्द्र सरकार का भनुगृद्दीत हूँ । ३२. बख्त-सूयिदर अत खजान भ्रायद्‌। रस्त-चून-बुतपररत सू থি बहार ॥ ( आाडन २.५४ ) । ( भाग्य फिसलते-फिसलते तुर्द्वारे देहलो पर आता दे जिस प्रकार भूतिपूजक बहार जाता ই) वि० सं० १२३५ में उत्पन्न गज के-वामी के भाई का लिखा शेर (पच) भाउनकृत फारस का साहित्यिक इतिहास, भाग-२; पृष्ठ-४8७ | ३. मोलाना पमिनद्वाज-ए-सिराज का पशिया के 'सुस्व्विम॒वंश का इतिहास, दिजरी १३४ से ६१८ द्विजरी तक, रेवर्टी का अनुवाद प०-६२० । है. सहासारत ९-२१-२




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