विश्ववाणी [वर्ष १] [जनवरी १९४१] [अंक १] | Vishwavani [Year 1] [Jan 1941] [No. 1]

Vishwavani [Year 1] [Jan 1941] [No. 1] by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जनवरी १६४१ ] इतिहास में सबसे पहले खत्तियों का जिक्र सन्‌ २६२४ ईसवो से पहले आता है जब मेसोपोयामिया कै प्रसिद्ध सुमेरी सम्राट सरगन पहले ने एशिया काचक के एक खत्ती शहर “पुरुष खण्ड” पर हमला किया था | सरगन के उत्तराधिकारी सम्राट नारमसिन का भी खत्ती राजा पम्ब श्रौर उसके सत्रह सामन्तों के साथ - युद्ध हुआ था। अठारहवीं सदी ई० प० में खत्तियों की सत्ता अपने शिखर पर थी। उन्होंने सन्‌ १७५८ ° प० म मेसोपोटामिया पर हमला करके प्रसिद्ध ह(म्मुराबी राजवंश कानाश कर दिया था। इसके बाद पूरे दो सी वर्ष तक खत्ती आपस की लड़ाइयों में उलभे रहे | इस आपसी लक्ाई में आयों' की एक दूसरी शाख्रा मित्तन्नी ने समम्त सुरिया, फ़िलस्तीन, उत्तरी अरब और पूरब में असुस्या की राजधानी निनेवेह तक अपने अधिकार में कर लिया | सन्‌ १६०० सदी ई० प० में मित्तन्नियों की हुकूमत तूनिस, हेलिश्रंपोलि और बालबेक तक थी। मिश्ली सम्राट थुतमोसे पहले और थुतमोम तीसरे से नहारिन के मैदान मे मित्तन्नियों से घमासान लड्ाई हुई । मित्तन्नियों का प्रतापी राजा दशरथ अपने समय का शक्तिवान राजा था। अपने रुतबे में वह भिल्री और बाबुली सप्रारें के बराबर था। इन तीनों ताकतों में बाद में प्रेम सम्बन्ध कायम हो गया और आपस में शादी ब्याह भी होने लगे। मित्तन्नियों की सत्ता को १४ सदी ई० प० में असुरी ताकत ने नष्ट कर दिया। सन्‌ १३८५ ई० प० में खत्तियों ने फिर अपना एक बार मज़बूत संगठन किया। इस समय मिस्र में प्रसिद्ध सन्‍त और महात्मा सम्राट इखनातन राज्य कर रहा था| इखनातन के राज्याभिषेक पर खत्ती क़ौम करै राजा सेपलेल, मित्तनी के राजा दशरथ श्रौर बाबुल के राजा वरवारिईश ने एशिया से इखनातन को बधाई और दोस्ती के सन्देसे भेजे। राजा दशरथ ने इख- 'जातन की मां रॉजमाता तिई का भी, जो राजा ' दशरथ के ही घराने की थी, बधाई का एक सुन्दर पत्र मेजा था | ৃ विश्ववाणी | १० इखनातन के बाद तूतनख़ामन मिस्र का पेरोश्र बना । उस समय खत्तियों का राजा शुप्पिलु ब्युमाश था । वूतनख़ामन की एक बिधवा ने शुप्पिल्ु स्थुमाश के एक बेट से शादी करनी चाही | इस तरह शादी करके खत्ती राजकुमार मिस्त्र के सिंहासन का अधिकारी बन सकता था | वह मिस गया भो किन्तु उसे मिस्धी सैनिकों ने मार डाला। जब मिस्र के सिंहासन पर पेरोश्र रामेस दूसरा बैठा उस समय खत्तियों का बल बहुत बढ़ा हुआ था। रामेस को भी अपना एशियाई साम्राज्य फिर से वापस जीतने का ख़बाल हुआ। सन्‌ शरद८ ई० प० में सुरिया के दक्स्िन भे एक दिन कादेश नामक शहर के पास ओरन्ती नदी के किनारें खत्ती सम्राट माठुल ओर रामेस की फ़ौजों में घमासान हुआ। दोनों ओर से क़रीब चालीस हज़ार सेनिक लड़ाई में काम आये लेकिन कादेश फ़तह न हो सका | कहा जाता हैं कि लड़ाई बराबर को छूटी। सम्राट रामेस अपनी राजधानी थीबी लौट आया | आहिस्ता आहिम्ता मिस्र की एशियाई सरहद के सरदारों और वहां के राजाओं ने एक एक कर अपनी आज़ादी और मिस्ती साम्राज्य से अपनी अलहृदगी का ऐलान कर दिया । रामेस फिर फ़ीज लेकर बढ़ा। १५ साल रामस श्रोर खर्त्ती सम्राट मुत्तलईश के बीच लड़ाई जारी रही। आखिर दोनों के बीच बराबरी को शर्तों पर सन्धि ही गई । सन्‌ १२७२ ईसबी से पहले की यह सन्धि जो चांदी की तझ्ती पर लिखी गई है “दुनिया के दो राज्यों या दो कौमों के बीच की सब से पुरानी सन्धि है जो इस समय मौजूद है। इममे १८ शर्तें हैं। इस शर्तनाम के पढ़ कर पता चलता ु कि खत्तियों के देश का नाम तसारः श्रौर उनकी राजधानी का नाम “खत्तसास” था। चांदी की तरुती पर इतना अच्छा नक्काशी का काम और खुदाई की गई है कि वह कला का सुन्दर और उत्कृष्ट नमूना समझी जाती है | तसख्ती में मंबसे ऊपर 'सुतेख' देवता का चित्र ६ जो खत्ती राजा के गले लगा रद्दा है। एक देवी कां




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