पूर्व मध्यकालीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास | Purv Madhyakalin Bharat Ka Rajnaetik Avam Sanskritik Itihas
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
972
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुसलमानों के श्राक्रमण के पूर्व भारत की दशा ও
की वृद्धि की । कल्याणी के प्रमुख चालुक्य नरेशों में सत्याश्रय, विक्रमादित्य पंचम,
जयर्सिह प्रथम, सोमेश्वर प्रथम (सत् १०४२-६१) तथा विक्रमादित्य षष्टम (सन् १ ०७६-
११२६) प्रख्यात थे । विक्रमादित्य षष्टम इस चालुक्य राज्य का सर्वश्रेष्ठ नरेश था ।
उसने घोल राजा राजेन्द्र द्वितीय, होयसल राजा विष्णुवर्धन और गंगनरेश को परास्त
किया और परमारों से मित्रता की । वह एक महान विजेता, योग्य प्रशासक और
विद्वानों का आश्रयदाता था । उसके उत्तराधिकारी अयोग्य और दुर्बल थे । कल्याणी
के चालुक्य राजाओं का मालवा के परमार नरेशों और दक्षिण भारत के चोल तथा
यादव राजाओं से प्रायः युद्ध होता रहता था । अंत में सन् ११६० में होयसू राजा
और देवगिरी के यादव नरेश ने चालुक्य राजा को परास्त कर कल्याभी कै चालुक्य
राज्य का अंत कर दिया ।
(स) पूर्वौ चालुक्य राज्य या वेंगी का चालुक्य राज्य -आंध्र राज्य में इस
चालुक्य राज्य की स्थापना करने वाला पुलकेशिन चालुक्य का लघुश्राता विष्णुवर्धन
था । इस राज्य के प्रमुख नरेशों में जयसिह प्रथम, इन्द्रवर्मा, विष्णुवर्घेन द्वितीय, जय-
सिह द्वितीय, आदि थे, पर विजयादित्य तृतीय (सत्र ८४४-८८८) और भीम तृतीय
(सन् ६३४-४५) विशेष उल्लेखनीय हैं । इन विजयादित्य झौर भीम ने राष्ट्रकूट नरेश
कृष्ण द्वितीय और गोविंद पंचम को क्रमशः परास्त किया और राज्य की सीमाश्रों की
वृद्धि की । इसके बाद इस चालुक्य राज्य का भ्रस्तित्व दो सौ वषो तक ओौर रहा)
इस राज्य का अन्तिम नरेश कुलोतंग चोल्देव (सनु १०६३-१११८} या । चालुक्य
नरेश कला भौर साहित्य के बड़े उदार संरक्षक ये । चालुक्य नरेशौने गुफाभ्रों को
काटकर बौद्ध चैत्य, मन्दिर भौर मूतियां बनवाई' । अजंता के कुछ गुफा चित्र चालुक्य
काल के हैं ।
(२) राष्ट्रकूट राज्य--आधुनिक विद्वानों के मतानुसार राष्ट्रकूट यादव क्षत्रिय
वंश के थे और वे उत्तरी भारत से दक्षिण भारत में आकर बस गये थे | उन्होंने छठी
ओर सातवीं शताब्दि में कर्नाटक श्रौर महाराष्ट्र में अपनी शक्ति बढ़ा ली थी । प्रारम्भ
मे ये चालुक्य नरेशों के सामन्त थे मौर बाद में स्वतन्त्र नरेश हो गये । राष्ट्रकूटों ने
पहिले बम्बई राज्य नासिक जिले में मयूरखंड श्रौर बाद में आंध्र प्रदेश में मान्य खेत
को अपनी राजघानी बनाया । राष्ट्रकूटों के प्रारम्भिक प्रमुख नरेशों में दन्तिवर्मा, इन्द्र
प्रथम, गोविन्द प्रथम, ककं प्रथम, दन्तिदुगं आदि थे । दन्तिदुगं राष्ट्रकूटों की महानता
का संस्थापक था। बादके नरेशों रमे ध्रुव, गोविन्द तृतीय, अमोधवषं प्रथम और
कृष्ण तृतीय अधिक प्रसिद्ध हृए । राष्ट्रकूट नरेश श्रुव ने गंगराजा, पल्लव राजा, प्रति-
हार नरेश, पाल राजा आदि को परास्त किया और अपने राज्य का विस्तार किया ।
उसके शासन काल में राष्ट्रकूटों की शक्ति ऊँचे शिखर पर थी। घ्रूवे का उत्तराधि-
कारी गोविन्द तृतीय (सन् ७६३ से ८१४) ने भी पल्लव, चालुक्य, प्रतिहार, गुर्जर, पाल
राजाओं को परास्त किया | अपनी दिग्विजयों से वह समस्त दक्षिण भारत का सर्वोच्च
शासक ही नहीं था, अपितु उत्तरी भारत में भी उसने अपनी धाक जमा दी थी। उसने
विशाल राष्ट्रकूट साम्राज्य स्थापित कर लिया था। इस समय (शप्राठवीं सदी के अन्त
और नवीं सदी के प्रारम्भ में) भारत में तीन शक्तियाँ महान और प्रबल थीं । बंगाल
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