अमृत महोत्सव गौरव ग्रन्थ | Amrit Mahotsav Gourav Granth

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Amrit Mahotsav Gourav Granth by अमृत महोत्सव - Amrit Mahotsav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अमृत महोत्सव - Amrit Mahotsav

Add Infomation AboutAmrit Mahotsav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
तक स्थानकवाली समाज का विकास नहीं होगा? उन कर्मठ कार्यकर्ताओं के प्रबल प्रयास से अजमेर में वृहत्‌ साधु सस्मेलन हुआ; और उस सस्मेलन के पूर्व प्रान्तीय सस्मेलन भी हुए। अजमेर सम्मेलन मे उन विभिन्न श्रश्तो पर चिन्तन हुआ,सवत्सरी जैसे उलझेहुए प्रश्त का कहाँ समाधान करने का अयास किया यया। जो एकता का स्वप्न देख रहे थे, बह भले ही अजमेर में साकार रूप न ले सका; पर नीक की ईंट के रूप में जो कार्य हुमा, वह बहुत ही प्रशसनीय रहा। उसके पश्चात्‌ सन्‌ १९५२ में सादडी में वृहत्‌ साथ सम्मेलन हुआ। यह सम्मेलन अपनी शानी का निराला था। जितने भी सत और आचार्य, वहाँ पधारे, उन्होने अपनी सम्प्रदायो का; पदकियों का त्याय कर अमण सध का तिर्माण किया, जैन इतिहास में १५०० वर्ष के पश्चात्‌ ऐसी अद्भुत क्राति हुई! जिसकी मुक्त कण्ठ ते सभी ने प्रशसा की। सावडी के पश्चात्‌ सोजत में मत्रिमडल की बैठक हुई, जोधपुर मे समुक्त वर्षावास हुआ; भीसासर से कृहत्त साघु सम्मेलन हुआ और अजमेर में पुत शिखर सम्मेलन हुआ। साडेराव में राजस्थान प्रान्तीय सम्मेलन हुआ और उसके पश्चात्‌ सन्‌ १९८७ में महामहिम राष्ट्रसत पृज्य आचार्य सम्राट श्री आनद ऋषिजी म के नेतत्वमे पुना मे वृत्‌ सष्ठ सम्मेलन हमा) इस साधु सम्मेलन की महत्वपूर्ण क्शिषता यह रही कि सभी अल्ताव जो पारित हुए; के सवनिमति से हुए। कर्षों से जो समस्याएँ उलझी हुई थी, उन समस्याओं का भी वहाँ पर स्नेह और सौहार्द के साथ समाधान हुआ। जितने भी सम्मेलन हए! उन सभी सम्मेलनो मे कान्फेन्स के अधिकारीगण दत्त-कित्त से सम्मेलन को सफल बनाने के लिए अहनिश प्रयास करते रहे! पुना सत-सम्मेलन मे भी पना तथा कान्फेन्त का अपूर्व योगदान रहा, जिसके फलस्वरूप ही सम्मेलन पर्ण सफल हओ! कान्फ्रेन्स का यह अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, जिसने कर्षो तक सष की सेवा की तथा समय-समय पर सध के विकास के लिए विविध प्रकार की योजनाओ को मूर्तत रूप दिया; उसी की फलश्रुति यह अग्रत महोत्सव है! मेरी हार्दिक मगल कामना है कि कान्फेन्स के कर्मठ कार्यकतमिण एके बनकर समाजोत्यान की दिशा मे निरतर आगे बढते रहे, वे समाज मे एता चुमध्रुर वातावरण निर्मित करेः जिससे जन-जन के मन मे कान्केन्स के भ्रति निष्ठा जागृत हो / उपाचार्य भी देबेद्र मुनिजी न. सन्व्म-स्थल १ नन्दी सूत्र ६ (क) प्रवचन मार तात्पर्यवृत्ति २४९ २ भगक्ती आराधना ७१४ (ख) भावपा्ुड टीका ७८ २ सर्वार्थसिद्धि ६१३। प्र ३३१ ७ भमवती आराधना विजयोदया टीका ५१०, पृ ७३० ४ सत्वार्थवातिक ६।१३।३, प ५२३ ८ वही ७१३ ५ भगवती जराधान विजयोदया टीका गाथा ४९३, पृ ७१६ अमृत महोत्सव गौरव-प्रन्थ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now