कसाय पाहुडं भाग २ | Kasaya Pahudam Bhag 2

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Kasaya Pahudam Bhag 2 by कैलाशचन्द्र: - Kailashchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना >? विषयपरिचय इस भागमें प्रकृतिविमक्तिका वर्णन है । प्रारम्भमें ही आचार्य यतिदृषभने विभक्ति झब्दका निक्षेप करके उसके अनेफ अर्थोंकी बताया है। फिर लिखा' है कि यहां पर इन अनेक प्रकारकी बभक्तियोमेंसे द्रव्यविभक्तिके कर्मवर्भाक्त और नोकमंविर्माक्त इन दो अवान्तर भेदोमे से कर्मविभक्ति नामकी द्वव्यावभक्तिसे प्रयोजन है। कपाय प्राभृतमें उस'का वर्णन है। इसके बाद कपायप्राभरतकी बाईसवीं गाथाका व्याख्यान करते दूए आचायं यतिदृषमने उससे ६ अधिकारोंका ग्रहण किया है ओर उनमेंसे सबसे प्रथम प्रकृतिविर्भाक्त नामक अर्थाधिकारका कथज्र करनेकी प्रतिज्ञा कौ ই। प्रकतिविभक्तिके दो भेद किये हें--मृछ प्रकृतिविमक्ति और उत्तरप्रकृतिविभक्ति। इस ग्रन्थमें केवल मोहनीय कमं मोर उसकी उत्तर प्रकृतियोका हीं वर्णन है | अत: यहा मूल प्रकृतिस मोहनीयकर्म और उत्तरप्रकृतिसे मोहनीयकमंकी उत्तर प्रकृतिया ही छी गई हैं । मूलप्रकृतिविभाक्ति मूल प्रकृतिविमक्तिका वर्णन करनेके लिये आचार्य यतिदृषमने आठ अनुयोगद्वार रक्खे हैं-- स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवोकी अपेक्षा मर्गावचय, काल, अन्तर, मागामाग और अल्प बहुत्व । किन्तु उच्चारणाचार्यने सतरद् अनुयोगद्वागेके द्वारा मूल प्रकृतिविर्भाक्तका वर्गन किया ह। चूकि चूणिसृत्र सक्षित्त हैं ओर चूरणिंसृत्ञकारने केवछ अत्यन्त आवश्यक अनुयोगाका ही सामान्य वर्णन किया दे, अत: जयधवलाकारने सबंत्र अनुयोगद्वारोका वर्णन उच्चारणाब्रनचिक अनुसार ही किया ह। सतरदह अनुयागद्धारोका संक्षिस परिचय नीचे दिया जाता ই। खमुत्कीतेना--दसका अथ हाता इ-कथन करना । इसम गुणस्थान सौर मागणार्खोमि मोद नीयकमका मस्तित्व जर नाम्तिष्व बतलाया गया ह । ग्यारह युणस्थान तक सभी जवोके माहनीयफमकी सत्ता पाड जाती ह ओर बारहव गुणस्थानसे लकर सभी जीव उमस रदित ह । अतः जन मगणाभोम क्षीण कषाय आदि ग़ुणस्थान नहीं होते, उनमें माइनीयका अस्तित्र ही बतलाया ह | आर जिन ममगयोमें दानो अवस्थाएं संभव हैं उनमें अस्तित्व ओर नास्तित्व दानों बतलाए है । सादि, अनादि, धव, अधुव-- इमम वतकाया द्‌ क माषटनीयविभक्ति किसके सादि दे, किसके अनादि है, किसके ध्रुव द, ओर किसके भ्रुव इ १ स्वामित्व--इ्मं माहनीयकमके स्वामीका निर्दे किया द । जिसके मोहनीयकमंकी सचा बतंमान है वह उसका स्वामी हैं। ओर जा मोहनीयकमंकी सत्ताको नष्ट कर चुका है वह उसका स्वामी नहीं हे । काल--इसमें बतलाया गया ट कि जीवके मोाहनीयकमकी सच्चा कितने काक तक रहती हैं और असचता कितने काल तक रहती हू ? किसीके माहनीयकी सत्ता अनादिसे लेकर अनन्तकाल तक रहती ६ और करिसीके सनादि सान्त होती है । अन्तर -- इसमे यह बतलाया गया हं कं माहनीयकमकी स्वा एक बार नष्ट होकर पुनः कितने समयके बाद प्राप्त दौ जाती ई । किन्तु चूकि माहनीयका एक बार क्षय हो जानेके बाद पुनः बन्ध नदीं होता भतः मोहनीयका अन्तरकार नदी होता । (१) १० १६। -~- --~----~- ----~-~ ---------~ ~~~




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