पिघलता दर्द | Pighalta Dard

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पराधीनता की कसक सुजाता आज यहुत खुश थी, वरसों बाद अपने मन की वात सुनने बाला कोई मिला। दीपा को उसके ऑफिस में आये आज दस विन हो गये थे, इतने कम समय में ही दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि लगता जैसे बरसों से साथ रह रही हो। सुजाता को याद आया वो दिन जय दीपा ऑफिस पहली यार आई थी, सवसे पहले उसने दीपा को ऊपर से नीचे तक भरपूर निगाह से देखा, उसकी आदत सी वन गई थी, किसी भी हमउम्र को देखने से पूर्व उसके सुहाग चिन्हों पर नजर डालती, दीपा को उसने जब सुहाग चिन्हों से खाली पाया तो उसे सुकून मिला, माथे की विन्दी से यह तो अनुमान लग गया कि वह विधवा तो नहीं है या तो परित्यक्ता या कुवारी होगी, सुजाता का अनुमान सही था दीपा कुवारी ही थी। हमउम्र और दोनो की स्थिति भी लगभग एक जैसी थी अत दोस्ती जल्दी ही हो गई। कुवारी रहकर पैत्तीस वर्ष की उम इस समाज में पूरी करने का कड़वा अनुभव दोनों ने महसूस किया था। आज लन्व टाइम मेँ एकान्त में यैठी दोर्नो ही अपने मन की परते खोल रही थी, सुजाता वोली “ दीपा तूने विवाह क्यो नकी किया। दीपा एक पल को घवरा सी गई, परन्तु शीघ्र ही अपने आप को सभाला, आज तक वो इस विषय में किसी से वात नहीं कर पाई थी करती क्या किसी को उसकी टीस का अनुभव भी तो नही था, वह तो केवल वेचारी वनी हुई थी, आज उसे मौका मिला था सुजाता क्या वताऊ? मेरा ऐसा भाग्य कहाँ ? या यू कह मैने अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है “पर तू तो इतनी सुन्दर है तेरे लिये लड़कों की कमी तो नहीं रषी होगी दीपा हसी, हँ सुजाता कमी तो विल्कुल नहीं थी, मेरी ही मति मारी गई थी एक से बढ़कर एक रिश्ते आये किन्तु रूप के घमण्ड मेँ चूर मुञ्ये कोई पसन्द ही नदीं आता था। सभी में कुछ न कुछ कमिया निकाल कर मना कर देती।” मेरी इस आदत से मम्मी पापा परेशान हो गये उन्होंने भी इस सम्बन्ध में बात करना बन्व कर दिया धीरे-धीरे रिश्ते आने रही यन्द हो गये। थोड़े दिन पराधीनता की कसक




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