चरित्र निर्माण भाग - 3 | Charitra Nirman Bhag - 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Charitra Nirman Bhag - 3 by पं. उग्रसैन जैन - Pt. Agrasain Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. उग्रसैन जैन - Pt. Agrasain Jain

Add Infomation About. Pt. Agrasain Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ११) पुरी में लौट आए और माता पिता वी भी बहुत प्रदार स्तुति की | श्री नाभिराय न भी इस महा पृष्याधिकारी पुत्र का जमो- स्सव बड़े ठाठ से मनाया । जिसम दद्व न १२३ करोड जाति वे देवोपनीत वादित्रा বী সতত ভুহালী গীত দৃঘানি तान पर आनन्द नाटक दिखला वर ताण्टव नत्य क्या। इद्र ने ही भगवान का नाम श्री ऋषभदेव रखा। चाल्य काल बालक ऋषभ बाल क्रीडा तथा चित्त विनांद करता हुआ दिन प्रतिदिन द्वितीया के দা ক समान वद्धि को प्राप्त होने लगा । भगवान था विसी भी गुरु से किसी भी प्रकार वी शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता न हुई क्योकि वे स्वय ही सब वे निरव और गुर रहे उनमे बुद्धि नेपुण्य, दीघत्शिता थौर कला चातुय अआ्रादि श्रनेक गुगग जम हो से विद्यमान थे । गहंस््य-जीवन कौमार बाल व्यतीत होन पर भगवान ऋषभ न जव युगा- वस्था में पटापण किया तो पिता नाभिराय ने उनके समक्ष विवाह प्रस्ताव रखा । दूसर सव मनुप्यो को ग्रपते ्रादग चारित्र के अनुद्दल चलाने तथा पूज्य पिता वी आचा का उल्लघन नं बरन वे ख्याल से भापने केवल ४ अक्षर का उच्चारण करवे अपनी स्वीइृति प्रदान की । वच्छ ओर महावच्छ नामक दो राजाओ ফী হশল্লী तथा सुन दा नाम की दो महासती सुंझ्ीला श्र मुललणा व रूपवती के याझ्मो वे साथ आपका विवाह वर दिया गया । यदास्वी बे उदर से “मरन आदि १०० पुत्र भर ब्राह्मी नाम बी एक पूत्री उततर. दई 1 सुनदय करे वाहूवति तथा सुदरी दो




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now