महावीर - मेरी दृष्टि में ए.सी. 5119 | Mahavir Meri Drishti Me Ac 5119

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Mahavir Meri Drishti Me Ac 5119 by भगवान रजनीश -BHAWAN RAJNEESH

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६. १ १ बे < श न © (' र) तीर्थदुरों का जन्म लेना, तीर्यद्धूरों की श्यखटा मे धीवीय व्यक्तियों का होना, उसके कारण, भ्द्धुछा बम्द करने में अनुयायियों का हाथ, पद्चिम में फकोरों को शद्घुडा, मुहम्मद के बाद मुसकूमान फ़क्ोर, रहस्यवादी सूफियों के सम्बन्ध में, सापना पद्धतियों के विभिन्न प्रयोगो मे लक्ष्य हो एकता, पशुहिषा के विषय में समझौता अमान्‍्य, वतस्तति जीवन और पशु जीवन मे अन्तर, शाकाहारी भौर अशाकाहारी व्यक्तियों की करुणा में अन्तर । प्रश्तोत्तर-प्रददन : ४६६-५२३ अभत्‌ मनादि भौर अनन्त, जड़ मौर चेतन एक हो बस्सु के दो रूप, सृष्टि के आदि को जानना असम्भव, जीवन को प्रतिकूल परिस्थितियों में महादीर की मानसिक स्थिति का विश्लेषण, महावीर कौ महिषा में स्थिरता । , श्रदनोतरप्रबखन : & ॐ $) महावीर की अहिंसा को समझने से कठिनाई, महाबीर के सिद्धान्तो का प्रयोगात्मक रूप, महाबीर की साधुता मौर दषरों को साधु बनने का उपदेश, महावीर के संघ में साध्वी संघ, महावीर के जीवत का विश्लेषण ओर समाज, समाज को स्थिति ओर नएं समाज क! निर्माण, राग-विराग, देष-ष॒णा आदि दनो पे मुक्त, ध्यान की भूमिका, निगोद की व्यास्या, निगोद से मोक्ष तक । प्रश्नोत्तर-प्रवचन : ५४६१-४४ ९३ मुक्त आत्मा का पुनरागमन, आवागमन से छूटने के उपाय । प्रश्नो तर-प्रबचनन : ५८४५६०० अकेले को खोज अकेले के प्रति, कहानियाँ ऐतिहासिक नहों, सत्यको खोज सें विधि की असमर्थता, अनेकान्तवाद । , प्रश्मोसर-प्रवचन : ६० १-९६१३ एकरतिवाद उपयोगी नही, सुरक्षा-असुरक्षा की मीमांसा, साथुओं मे अहुर ।




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