प्रदुषण कारण और निवारण | Pradushan Karan Aur Nivaran

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Pradushan Karan Aur Nivaran by श्यामसुन्दर शर्मा - Shyamsundar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2. वायु प्रदूषण जीवित रहने के लिए हमें जिस वस्तु की सबसे अधिक आर्व- व्यकता होती है वह है वायु । वायु के बिना मनुष्य ही नहीं वरन कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। वायुविहीन वातावरण में कुछ मिनटीं के भीतर ही हमारी मृत्यु हो सकती है। पृथ्वी पर वायु की कमी नहीं है । पृथ्वी पर सतह से लेकर लगभग 300 किलोमीटर की ऊंचाई तक वायु की एक छतरी छाई हुई है.। इस छतरी के निचले, लगभग 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक के भाग में ही वायु की अधिकांश मात्रा मौजूद है। हमारे लिए वायु का यही भाग सबसे महत्वपूर्ण भी है । विज्ञान का एक साधारण विद्यार्थी भी यह भली-भांति जानता है कि वायु अनेक गैसों को मिश्रण हे जिसमें कुछ अन्य पदार्थ यथा पानी की भाष, घूल के कण आदि भी मौजूद होते है। वायू में सबसे अधिक मात्रा में, लगभग 80 प्रतिशत, नाइट्रोजन होती है। शेप 20 प्रतिशत भाग में आवसीजन का ही बोलबाला होता है। बहुत थोड़ी मात्र में, यथा 10 हजार भाग में से 3 या भाग्‌, कार्बन डाइआवसाइड तथा आन, हीलियम जेसी अक्रिय गंसें होती हैं । हमारे लिए वायु का सबसे महत्वपूर्ण अंग है आवसीजन । जब हम जीवित रहने या आग जलाने के सन्दर्भ मे वायु की बात करते हैं तब हमारा वास्तविक तात्पयं उसके आक्सीजन अंश सेही होताहै। आवसीजन सब जीव-जन्तुओं, पेड-पौधो के लिए अनिवायं है (कुच अत्यन्त सूक्ष्म जीवों को छोड़कर) । यद्यपि हमारे लिए नाइट्रोजन का महत्व कम नही है परन्तु उसका महत्व वायु के निष्क्रिय घटक के रूप में आवसीजन की क्रिया को मन्द करने के रूप में अधिक है। वैसे हमारा पोषक भोजन, पशुओं के पोषक चारे और पेड़-पौधों के लिए पोपरू खाद का मुख्य अंग नाइट्रोजन ही होती है। पृथ्वी की सतह से लगभग 10 किलोमीटर ऊपर और 10 किलो-




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