जिनवाणी : कर्म सिध्दान्त विशेषांक | Jinvani : Karm Sidhant Vishsehank
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नरेन्द्र भानावत - Narendra Bhanawat
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शांता भानावत - Shanta Bhanawat
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बामों की घृष छाह ] 1९१
चालू रहती है। उसका कभी अवसान-अत नही हो पाता । अत ज्ञानी कहते
हैं कि कम भोगने का भी तुमको ढग-तरीवा सीखना चाहिये । फल भोग की भी
कला होती है भौर कला के द्वारा ही उसमे निखार श्राता है । यदि कम भोगने
की कला सीस जामोगे तो तुम नये कर्मो का बध नहीं कर पाझ्ोग । इस प्रकार
फल भोग मे तुम्द्यारी भात्मा हल्की होगी । +
कम फल भोग आवश्यक
शास्त्रकारो वा एक अनुभूत सिद्धात है कि--“कडाण कम्माण न मोबख
प्रत्यि ।/ तथा भश्वयमेव भोक्तय, इत कम शुभाशुभम्” यानी राजा हो या
रक, भ्रमीर हो या गरीब, महात्मा हो अथवा दुरात्मा, शुभाशुभ कम फल सब
जीव को भोगना ही पडेगा। कमी कोई भूले भटके सात प्रकृति का झादमी
किसी ग्ृहस्थ के घर ठडाई कहकर दी गई थोडी मात्रा मे भी ठडाई के
भरोसे भय पी जाय तो पता चलने पर पछतावा होता है मगर वह भग
अपना अ्रसर दिखाए बिना नही रहेगी । बारम्वार पश्चात्ताप करने पर भी उस
साधु प्रकृतिको भी नशा अये बिना नहीं रहेगा । नशा यह नही समभेगा कि
पीने वाला स त है और इसने भ्रनजाने मे इसे पी लिया है झत इसे भ्रमित नही
करना चाहिये । नही, हगिज नही । कारण, बुद्धि को भ्रमित करना उसका
स्वभाव है। अत वह नशाश्रपना रग लाये व्रिना नही रहेगा 1 वस, यही हाल
कर्मकार)
भगवान महावीर कहते हैं कि-- है मानव। सामाय साधु की वात्त
मेया ? हमारे जसे सिद्धयत्ति की ओर बढने वाले जीव भी कम फल के भोग से
वच नही सकते । मेरी आत्मा भी इस कम वे वशीभूत होकर, भव भव मे गोते
खाती हु कम फल भोगती रही दहै । मने मी अनन्तकाल तक, भवेप्रपच में
प्रमादवश कर्मों का वध क्या जो झाज तक भोगना पड रहा है। कम भोगते
हुए थोडा सा प्रमाद कर गये तो दूसरे कम झातर बंध गए, चिपक गए ।”
मतलब यह है कि कर्मों का सम्बंध बहुत जबदस्त है। इस बात को
अच्छी तरह समझ लिया जाये कि हमारे दनिक व्यवहार में, नित्य की किया
में बाई भूल तो नही हो रही है ? नये क्रम बाधने मे कितना सावधान हूँ?
कम भोगते समय कोई नये कम तो नहीं बघ रहे हैं? इस तरह विचारपुवक
बाम करने वाला, कमबध से बच सकता है ।
फर्मो को पूप छाह
पर तु सतार वा नियम है कि सुख के साथ दु ख आता है और साता के
साथ प्रमाता का भी चत्र चलता रहता है। यह बमी नहीं हो सबता कि
शुभाशुम कम प्रकृतियों म मात्र एक ही प्रद्वति उदय में रहे और दुसरी उसके
साथ नही भाये | ज्ञानिया ने प्रतिक्षण शुमाशुम कर्मा का बध भौर उदय चाल
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