श्रीमद्र विषेणाचार्यकृत पद्मचरितम खंड 3 | Shrimadra Vishenacharyakrit Padmcharitama khand 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
455
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पद्मपुराणम्। ८ षट्षष्टितमं पे ।
यावत्समाकषेदतिं प्रदीपे । तावत्सुमित्रातनयेन रुद्धः ॥ ८८ ॥
प्रसीद वैदेह { विघुंच कोपं । न जंबुके कोपुपति सिंहः ॥
गजेद्रकु मस्थलद्ारणेन । क्रीडां स भुक्त्वा निकरः करोति ॥ ८९ ॥
नरेश्वरा उर्जितशौयंचेष्टा । न भीतिभाजां प्रहरति जातु ॥
न ब्राह्मणं न श्रमणं न शूल्यं । लियं न बलं न হুল दृतम्॥ ९०॥
इत्यादिभिवादिनवहेः सुयुक्ते--येदा स लक्ष्मीधरपंडितेन ॥
नीतः प्रबोध शनकेरमुंचत् । क्रोध तथा दुःसहदीप्तिचक्रः ॥ ९१ ॥
निर्भेत्सितः क्रकुमारचक्रेः वाक्यरलं वजनिषाततुल्येः ।
अपूर्बहेतुप्रलघूक्तात्मा स्वमन्थमानः शणुता उप्यसारम् ॥ ९२ ॥
नमः समृत्पत्य भयाद्दितोऊईहं त्वत्पादमूलं पुनरागतो5्यम्।
लक्ष्मी धरोजसा यदि ना5मविष्य-देंदेहतो देव | ततोथ्मरिष्यम् ॥ ९३ ॥
इति गदितमिंद यथा<नूभूतं॑ रिपु्चरितं तव देव ! निर्विशेकम् ।
कुरु यदुचितमत्र सांप्रतं वचचनकरा हि भवंति मद्विधास्तु ॥ ९४७॥ ˆ
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