श्रीअमृत-स्तवनावली | Shriamrit-stavnavali

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Shriamrit-stavnavali by अमृत विजय - Amrit Vijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{१३1 वरते आनन्द पूर, उर विलसित सुखवासा । राजग महाराज, चौराश्च किया चौमापा ॥ ४४ ॥ चोमासा उतरे थके, मुनिवर कीघ षिदार । युक्ते तीरथ यातरा, करते मत्रि उपकार ॥ ४५॥ मगशी पारस नाथका, नयर उजेणी घाम | यही गाँव बन्दे बडी, पारस तीरथ ठाम॥ ४६ ॥ असुकरमे मान्या पिचिरता, परी कडोद मुकाम । सष अरज सुणी मुनि करे, चारु माष यकाम ॥ ४७॥ धम मण्डल के धौरी, दुमति की सग छोरी, सुमता से प्रीति जोरी, ध्याये अगिनासी है। सयम सलील धर, तप यार मेद्‌ करे) कटोद्‌ निवासी बरे, साठ पिचियामी ६ ॥ आराधित जिनदेव, करे उपदेश मेव, भक्तिमाय गुरुदेव, सेयम उलाशी है । सथ चित चाद करे, आनन्द उच्छर भर, मिष्या पुज्ञ को दर, जिनमत प्यासी है ॥ ४८ ॥ पाती पूनम फे पटी, चरि पिचरे मुनि जेह | दर्शपिषासु आतमा, यन्‍्दे भरियण तेह ॥ ४९ ॥ ঘঘির ঘরলনা योग से, देश नयर पुर गाम। मोदनमेदे सादरा, गुर देव फा पाम ॥ ५० ॥




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