काव्य कौस्तुम | Kavya Kaustum

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Kavya Kaustum by विद्याभूषण मिश्र - Vidhyabhushan Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४३ ।] में उक्त गुशों से सम्पन्न वाक्य अधिकतर पद्यात्मक ही माने जाते हैं ।'इस़ कारण, पद्म में ही कबिता हो सकती दै--यह धारणा बहुत-से लोगों की है। पर सच तो অহ है कि पद्म भावों को व्यक्त करने का एक ढंग मात्र है। यदि भाव में मर्म-स्पर्शिता और आकषण शक्ति है तो उसे चाहे जिस विधि से अभिव्यक्त किया जाय वह कवित्त्व गुण से सम्पन्न समझा जायगा। इसके विपरीत भाव-विदीन प्यको कोरी तुकबन्दी या छन्दोबद्ध रचना ही कह सकते हैं। अतः द्यः ओर कविता! का अन्तर ध्यान में रखने से हम रंगीन कोच को मणि सममः वैटने की भूल से वच सकते है । साघा- रणतया हर एक पद्यबद्ध उक्ति को कविता कहा जाता रहै । यहं भूल है । जो बात हमारे हृदय को स्पश करनेवाली न हो, उसे कविता नही कहना चाहिए । कुछ लोगों का कहना है कि कविता का कार्थ केवल कुछ समय के लिये हमारा मनोरंजन करना मात्र है । पर इस कथन में भी सत्य का अंश बहुत कम है । कविता कोई तमाशा नहीं है । उसका मुख्य कायं तो मनोटृत्तियों का परिष्कार कर छन्द 'ऐसी बना देना है जिससे उनमें सहानुभूति की पूर्ण मात्रा उत्पन्न हो जाय | जिस प्रकार आदि कवि वाल्मीकि ने क्रोंच पक्षी के जोड़े में से एक के व्याध-बाण' से भाहत होकर गिरने पर अपने




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