श्री चन्द्रावली नाटिका | Shree Chandraawali Naatika

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Shree Chandraawali Naatika  by लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय - Lakshmi Sagar Varshney

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ श्रीचन्द्रावली अनुभव करे कि वह कोई खेल न देखकर वास्तविक दृश्य देख रहा है। नादय- शास्त्र के आचार्यों ने पहले अमिनय को तीन भागों में बॉठा था--नाद्य, रुत्य और शत्च । कहा जाता है शिव ने इन तीन भेदों में दो भेद और बढ़ाए-- ताण्डव ओर लास्य । नाट्य को छोड़कर अभिनय कै शेष चारो भार्गो का संबंध नाचने वालों से है । इसकिए यहो केवल नाय्य के भेदौ का उस्केख किया जाता है :-- नाय्य | | रूपक उपरूपक रूपक | | | | | | , | শু. |“ | नाटके प्रकरण भाण व्यायोग समवकार डिम ईहामृग अंक वीथी प्रहसन টস নস পবা ताननाः | | नाटिका चोरक गोष्ठी सष्टक नाट्यशसक प्रस्थान उल्ल्ाप्य काव्य प्रेंखण रासक के मी 1 का आस বি, संलापक श्रीगदित शिल्पक विलासिका दुर्मल्लिका प्रकरणिका हल्लीश भाणिका किसी भी अवस्था कै अनुकरण को नाय्य कहते है। रूपक के सब भेदों मे नारकः सुख्य है । श्री चनद्रावीः नाटिका है ओर भनाटिकाः उपरूपक कै अठारह मेदो मे से पहा येद है । उपरूपक होते हुए भी वह नायकः ओर प्रकरण का मिश्रण है। “नाटिका' की बहुत-सी बातें “नाटक! से मिलती हैं | 'লাতিন্ধা” जहाँ प्रकरण से अधिक मिलती है वहाँ उसे प्रकरणिका कहते हैं, और जहाँ नाटक! से अधिक मिलती है उसे 'नाटिका' कहते हैं । नाटकीय मुख्य कथा को आरम्म करने से पहले भारतीय नाट्य-शास््र मे ” कुछ कृत्यों का विधान है जिन्हें पूर्वरंग कहते हैं ।! पूर्चरंग के कई अग हैं. जिनमे स॒ख्य शरुः है । राजा, ब्राह्षण अथवा देवता की आरंभ में जो स्तुति रहती हैं उसे 'नांदी कहते हैं | नांदी एक प्रकार का मंगलाचरण है। नादी के लिए एक या दो पद्म ही आवश्यक होते हैं, किंतु कहीं-कही अधिक भी देखे जाते हैं। नाटक का प्रधान परिचालक सूत्रधार होता है। उसके हाथमे नारकीय १, यन्चाव्यवस्तुनः पू्व रङ्विघ्रोपलान्तये । ऊंदीरवाः अकुव न्ति पूर्वरङ्ः स उच्यते ॥ साहित्य दर्पणः, षष्ठ परिच्छेद, इलोक २२ ।




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