सोने की ढाल | Sone Ki Dhal
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बेढ़ा (५
जब उन्होंने रस्सी काटी, तो देखा, कि ठीक कलेजे के उरे
गोली लगने का छेद था, तो भी खन नहीं आ रहा था । क्या
৬৬ হি में क ह
पहिली दोनों गोलियों में से एक क्या यहाँ पहुँच गई ? खून भीतर
को ओर तो नहीं बद्द रहा है ? वही तो इस मूछों का कारण नहीं है ?
या पीछा करने और पकड़ने के भय ने, वृद्ध के अत्यन्त जरा-जीण
शरीर पर प्रभाव डाला है? अच्छी तरह परीक्षा करने पर ही यह
मालूम हो सकता है | इसे जहाज पर ले चलना होगा ।
आओ । कद्कर कप्तान ने उंगली स्रे नाव की ओर इशारा किया।
शिव अब तक नाव पर बैठ गया था, उसने भी अपने पिता के
शब्दों को दुदराते हुए लड़के को अपने पास बुलाने का इशारा किया। '
लड़के ने फिर बड़ी उत्सुकता भरी दृष्टि से वृद्ध के नीरव सुख की ओर
देखा; और तब वह वहाँ से उठकर नाव में गया, और फिर वहाँ से
शिव के साथ सीढ़ी से जहाज पर ।
दूसरी रस्सियाँ भी काट दी गई, और कप्तान ने स्वय वृद्ध को
जहाज पर पहुँचाने में मद्द॒की । उसे अपने कमरे में ले गये, बेड़े की
लकड़ियाँ अलग अलग करके ऊपर उठा ली गई , नाव छत पर खींच-
कर जकड़ दीगई, और “कदम्ब' अपने असली रास्ते पर आकर
पच्छिम की ओर दृटकर उत्तर-पच्छिम दिशा में चलने लगा ।
“অনু कोन है, बाबू जो ९! यद शिव ने तब पूछा, जब कि भोजन
और ओऔषध के जोर से वृद्ध सचेत हो चुका था ।
कप्तान-- एक यहूदी है ।
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