भारतीय अर्थशास्त्र का विवेचन | Bharteey Arthshastra Ka Vivechan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
115 MB
कुल पष्ठ :
623
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है भारतीय अथशाखर का बिवेचन
पर आधारित होता है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि भारत मँ मनुष्य व्यक्तिगत श्रार्थिक हितो की
भावना. से प्रेरित होकर कार्य नहीं करते किन्तु यह अवश्य है कि उनके जीवन का वही एक मात्र
लक्ष्य नहीं होता भारत में रीति-रिवाज एवं प्रथाएँ अधिक प्रमावशाल्री हैं। प्रतिस्पर्धा सम्बन्धी
नियम, पूजी तथा भ्रम की गतिशीलता सम्बन्धी नियम भारतीय समाज में बहुत इद् तक नहीं लागू होते ।
जनसंख्या यहाँ तेजी से बढ़ती है और उत्पादन लगभग एक सा ही रहता है। उपरोक्त प्रकार के
अनेक तथ्यों एवं त्कों' द्वारा रानाडे ने यह सिद्ध कर दिखाया कि भारत में केवल अथशाख््र के
सिद्धान्तों एवं मान्यताओं को आधार मानकर सरकार द्वारा आर्थिक नीति स्थिर करना मूल है ।
यहाँ की सरकार को सरकार की आर्थिक नीति स्थिर करने में भारतीय परिस्थितियों का पूर्णरूपेण
ध्यान रखना चाहिये | |
यह निर्विवाद- है कि रानाडे के उपयुक्त काय से द्वारा देश को भारी त्वाभ पहुँचा | उन्होंने
मारत के हित के लिए एक प्रकार से वही कार्य किया जो फ्र डरिक लिस्ट ने योरोपीय देशों के लिये
किया था | इस स्थल्ल॒ पर यह बताना अ्प्रासांगिक न होगा कि श्री गोखले अ्रपना मत स्थिर करने में
बहुत अंश तक फ्र डरिक लिस्ट से प्रभावित हुये थे। इस स्थत्न पर हमें यह स्मरण रखना चाहिये
कि अब दोनों दिशाओं में परिवर्तन हो गया है। एक ओर भारतीय परिस्थितियाँ मी काफी बदल गई
हैं और बहुत कुछ पश्चिमी देशों सरीखी होती जा रही हैं। दूसरी ओर अथशास््र के सिद्धान्तों एवं
मान्यताओं में भी काफी परिवर्तन हो गया है। अब अथशाख्रियों ने यह दावा करना छोड़ दिया है
कि श्र्थशाल्न के सिद्धान्त स्वदेशीय श्रौर सवंकालीन है श्रनौर सब परिस्थितियों में समान रूप से
लागू होते हैं। अब अरथशासतत्र के सिद्धान्तों में व्यवहारिकता और यथाथता को भी पर्याध महत्त्व
प्रदान किया जाने लगा है। |
भारतीय अर्थशास्र का क्षेत्र--भारतीय अथंशाञ्र की परिभाषा से उसके क्षेत्र का
काफी आभास मिल जाता है। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि भारतीय श्रथशाञ्लन के अ्रन्तगंत
उसकी आर्थिक सभस्याओं एवं तत्सम्बन्धी हल्नों के सम्बन्ध में विचार किया जायगा | मारतीय अथ-
शास्त्र क्रा मुख्य विषय-वास्तविकताओं का अध्ययन करना होगा। सैद्धान्तिक चर्चा का स्थान उसमें
नग्रण्य होगा | इस भाँति भारतीय अथशाञ्न के अन्तगत भारतीय खेती, भारतीय व्यापार, वाणिज्य,
भारतीय उद्योगों, विनिमय, भारतीय मुद्रा, भारतीय लेन-देन प्रथा आदि सम्बन्धी सभी समस्याश्रों:पर
विचार किया जायगा | भारतीय मजदूर आन्दोल्नन एवं मारतीय सहकारिता आन्दोलन आदि: का
अव्ययन भी भारतीय अ्थंशात्र के अन्तर्गत ही सम्मित्नित होगा | प्राकृतिक साधनों एवं सामाजिक
वाताबरण का पर्यावेज्षण एवं उनका आर्थिक प्रभाव भी विषय के पूर अ्रध्ययन के लिए. आवश्यक
होगा ¦ इन सब बातों के अतिरिक्त भू-राजस्व पद्धति, यातायात के साधन तथा भारत की वित्त
व्यवस्था का भी सूछरम निरीक्षण करना आवश्यक होगा। आमीणों की कजदारी सम्बन्धी समस्याश्रों,
विदेशी पू जी आदि का भी विवेचन मारतीय अथशाख्र के अन्तगत शामिल है। संक्षेप में कह जा
सकता है कि भारत और भारतीयों के आर्थिक जीवन का प्रत्येक पहलू भारतीय अर्थशात्र का
एक अक्ञ है
भारतीय अथशाख्त्र का ज्षेत्र काल और समय की सीमाश्रों से बँधा हुआ नहीं है। भूतकालीन
आ।थिक स्थिति एवं समस्याओ्रों का अध्ययन तथा वर्तमानकालीन आर्थिक समस्याश्रों के अध्ययन के
अतिरिक्त भविष्य की ओर भी यह देखता है। आर्थिक समस्याओ्रों का अध्ययन उन्हें जान लेने से
ही समास नहीं हो जता । श्रार्थिक समस्याश्रों के अ्रध्ययन के अन्तर्गत उनके मूल कारणों का प्रत्येक
पहलू से विश्लेषण तथा उन्हें भविष्य में हल करने के उपायों को भी समस्याश्रों के अध्ययन के
उरग, सम्मिलित किया जाता द ॥ इसके साथ ही साथ यह भी विचार करना आवश्यक होता है
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