मित्र बनाने की कला | Mitra Banane Ki Kala

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Mitra Banane Ki Kala  by लेखराज सिंह - Lekhraj Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ मित्र बनाने की कला पहने, वह उसके बदंन पर फबती हो तथा जिस काम पर व ह लगा हो, वह उसके अनुकूल हो । स्त्री-पुरुष दोनों ही समान रूप में हँसता हुआ चेहरा बनाए रखने की आदत डाल सकते हैं । वे मुँह की रुखाई-भरी रेखाओं ओर झुर्रियों को दया की आदत अपने में पैदा करके तथा गुस्सा आने पर उसे रोककर मिटा सकते हैं । गिलवेल के बुद्धिमान, खुशदिलि, बूढ़े व्यक्ति लाडे बैडन पावेल ने एक बार लिखा था, “साधारण जिन्दगी में कठिनाइयाँ ओर निराशा पैदा होना स्वाभाविक चीज है । किन्तु यदि आप इन पर मुर्रा सके यर अनिवार्य सममकर इन्द स्वीकार कर सकं, तो शीघ्र ही ये खत्म हो जायँगी |” यह ढंग है जिसके द्वारा हम एक हँसता हुआ सुखी चेहरा प्राप्त कर सकते है । लोग हमारे बारे में जानना चाहेंगे, क्‍योंकि हमें देखकर वे प्रसन्नता अनुभव करेंगे । यह कहना मूखेता की बात है कि आप इतने सममदार नहीं कि लोगों को मित्र बना सके। यदि आप एक साधारण सूम-बूक और समझ के आदमी हैं और आपमें कोई खराबी नहीं, तो आपका यह कथन सर्वथा असम्भव है। ऊँचे गणित के किसी विवाद में पड़ना मैं पसन्द नहीं करता | कोशिश करने पर भी ऐसी किसी बहस में हिस्सा नहीं ले सकता | मुझे न तो गणित विद्या का ज्ञान है और न इस दिशा में मेरी रुकान है । किन्तु इसका यह मतलब नहीं कि में समझदार नहीं। फिर भी




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