संवाद कला | Samvadkala

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Samvadkala by अभिराम झा - Abhiram Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११). ` संवाद्दाताको 'सवेत्यापीः कदा गया है, अर्थात्‌ उसे सर्वत्र पस्थित रहना चाहिये, किन्तु वस्तुतः यह असम्भव है। कोई समाचार-समिति या समाचारपच्र-संस्था सभी स्थानो अपना संवाददाता नहीं रख सकतो । यह बहुव्यय-साध्य है । चतः प्रत्येक ` समाचार-संस्थामें संवाददाताओंकी संख्या नियत रहती हे और प्रत्येक संबाददाताके लिए ज्ञेत्रविशेषका कार्यक्रम निर्धारित रहता. हैं। यह भी असम्भव दहं कि ्ञे्विशेषकी प्रत्येक घटनाके <मय वह स्वयं उपस्थित रहकर प्रत्यक्षदर्शीके रूपसें अपना आंखों-देखा विवरण दे । यही कारण है कि उसे कई सूत्रोंसे देनन्दिन संपर्क स्थात कर संवाद-अहण करना पड़ता है । संवादमप्रदानमें सर्वा- धिक उबर पुलिस ज्षेत्र होता ই। आधुनिकतम पुल्निस विभागोंने केन्द्रीय कार्यालय कायम कर रखा हें जहाँ सभी ज्षेत्रोंसे टेलीफोन और टेलीटाइप आदि साधनों द्वारा तुरत ही घटनाओंके संवाद पहुँच जाते हैं। इस प्रकार पुलिसक कार्यालयमें घटनाक दर्ज होनेके बाद ही संवाददाता জজ जान लेता है, और संभव होता है तो घटनास्थलपर दौड़कर पूरा विवरण तयार कर लेता है। जिलोंके संवाददाता भी इसी प्रकार जिलेकी घटनाएं जान लेते तथा उन्‍हें. समयपर कार्याज्षयमें तार, टेलीफोन अथवा पत्र द्वारा प्रेषित करते हैं विशिष्ट ज्षेत्र कुछ क्षेत्र या इलाके ऐसे होते हैं जिनका ज्षेत्रविशेष (भौगो लिक) नहीं होता । खेल-कूद, राजनीति, श्रमत्षेत्र, विज्ञान आदि इस कोटिमें आ सकते हैं। इन विषयोंका विवरण तेयार करने.




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