पवहारी बाबा | Pavahari Baba
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
44
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पवहारी बाबा
प्राणों का संचार हो जाता है, वही आत्मज्ञान, वही धर्म-विज्ञान
नि:संदेह सर्वश्रेष्ठ है; क्योंकि केवल वही मनुष्य को सम्पूर्ण
ध्यानमय जीवन व्यतीत करने में समर्थ बना देता है। घन्य है वह
देश, जिसने उसे “पराविद्या ” नाम से सम्बोधित किया है।
यद्यपि कर्-जीवन में प्राय: ब्रम्पूणे रूप से तत्व प्रकाशित होता
दिखाई नहीं देता, परन्तु फिर भी आदरो कमी नष्ट नहीं होता | एक
ओर हमारा यह कर्तव्य है कि हमे अपने आदर्श का कमी विस्मरण
न होना चाहिए, चाहे हम उसकी ओर द्वत गति से अग्रसर हो रहे
हों अथत्रा धीरे धीरे धीमी गति से रेंगते हुए जा रहे हों, और दूसरी
ओर हमें यह भी न भूछना चाहिए कि यद्यपि हम अपनी आँखों पर
हाथ रख कर उसका प्रकारा ढॉकने का पूर यत्न करते हैं तथापि
वह सर्वदा। हमारे सम्मुख अस्पष्ट रूप से विद्यमान रहता ही है ।
आदरो दही कर्म-जीवन का प्राण है। हम चाहे दाशेनिक
विचारों में मग्न रहा करें अथवा दैनिक जीवन के कठोर कतर्व्यो का
पाटन किया करै, हमरे सम्पूणं जीवन मे हमारा आदद ही ओत-
प्रोत ख्प से विद्यमान रहता है। इसी आदरं की किरणे सीधी
अथवा वक्र गति से प्रतिबिम्बित तथा परावतित हो मानो हमारे
जीवन-गृह मे छिद्र छिद्र में से होकर प्रवेश करती रहती हैं ओर हमे
जान अथवा अनजान में अपना प्रत्येक कार्य उसी के प्रकाश में करना
पडता है--उपी के द्वारा प्रयेक वस्तु सुरूप अथवा कुरूप अवस्था मे
परिवतित हुईं देखनी पडती है। हम अभी जैसे हैं अथवा भविष्य में
£
User Reviews
No Reviews | Add Yours...