शिवाजी | Shivaaji

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Shivaaji by भीमसेन विद्यालंकार - Bheemsen Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ [ शिवाजी रूपी श्रमे कवच पर शत्रु का वार बेकार रहा | ১৫. > २५ >< शिवाजी महाराजा मिज्ञां जयसिंह की प्रेरणा तथा आश्वासन पर ओ्औरंगजेब के दरबार में उपस्थित होने के लिये आगरा जाने के लिये तेयार हो रहे हैं। तरुण मंडली तथा शिवाजी के बालसखा और मंत्रि- मंडल चिन्तित हैं कि पता नहीं श्रोरंगजेब क्या करे ! पीछे महाराष्ट्र के शासन-चक्र का संचालन केसे हो ? शिवाजी के व्यक्तित्व के स्थान पर किसका अ्क्तित्व सारे मराठा-मंडल को एक सूत्र में संगठित करेगा ? वीर पुत्र ने माता के सामने यह समस्या उपस्थित की । जीजाबाई ने पुत्र का प्रतिनिधि होकर शासन-सूत्र की बागडोर संभाली और शिवाजी को अमर आशीरवाद के साथ मृत्यु के मुँह में, औरंग जेब की छुल-शाला में, जाने के लिये उत्साहित तथा सावधान किया | केवल पुत्र को ही नहीं, अपने पुत्र के पुत्र को भी साथ भेजा | क्या आज कोई वीर देवी अपने प्राशसार को--अपने हृदय के सार पुत्र को--इस प्रकार राष्ट्रीय काय के लिये संकब्पूण मार्ग का राही बनाने को तेयार है ? जीजाबाई ने अपने हृदय के टुकड़ों को महाराष्ट्रीय जनता की स्वाधीनता की जलती भस्‍्दी में भेद कर, शिवाजी के बालसखाश्रों तथा साथियों को भारी से भारी बलि- दान देने के लिये उतावला कर दिया | ৯৫ >< ৯৫ > मुगल दरार के समाचार महाराष्ट्र में पहुँचे। शिवाजी पुत्र सहित श्रौरंगजेव का केदी बन गया। जीजानाई विचलित न हुईं । उनके व्यक्तित्व ने महाराष्ट्र को विशौर्ण न होने दिया |




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