भारत की राष्ट्रीय संस्क्रति | Bharat Ki Rashtriy Sanskriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.27 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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एस. आबिद हुसैन - S. Aabid Hussain
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दुर्गा शंकर शुक्ल - Durga Shankar Shukl
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका 1 वैज्ञानिक विवेचना में सबसे नीरस कार्य है परिभाषा विशेषकर अमूर्त पदों की । एक ऐसा सामान्य सिद्धांत निर्धारित करना जिसमें अपरिमित संख्या में विशेष वस्तुओं का समावेश हो सके ऐसे बहुत से लोगों के सामर्थ्य के बाहर है जिनके पास विशुद्ध विवेक की क्षमता उनके अपने साधारण हिस्से से अधिक नहीं हैं । प्राचीन एथेंसबासी साक्रेटीस को सहन नहीं कर सके क्योंकि वे प्रत्येक पर इस बात के लिए जोर डालते थे कि वे न्याय आत्म संयम प्रेम आदि ऐसे अमूर्त पदों को परिभाषित करें और प्रयत्न कर वे जो भी परिभाषा तैयार करते उसकी धज्जियां उड़ाकर वे उन्हें चकित और उत्तेजित कर देते थे । किंतु दुर्भाग्यवश वैज्ञानिक समस्या ओं के संबं ध में बिना परिभाषा ओं के कोई कार्य नही कर सकता । हम जिसके बारे में बात कर रहे हैं उसकी सही समझ के बिना यदि आप और हम तर्क करना प्रारंभ करते हैं जैसे बहुधा होता है तो साक्रेटीस के व्यंग्य-विनोद के शिकार की तरह अपने को हास्यास्पद विरोधाभासों में उलझा लेंगे । इसलिए उपयुक्त यह होगा कि विवेचना प्रारंभ करने के पूर्व हम अपनाये गये शब्दों राष्ट और संस्कृति जिन पर यह पुस्तक आधारित है के संबंध में कम से कम अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर लें । पहले हम यह देखें कि लोग संस्कृति शब्द को सामान्य रूप से किस अर्थ में लेते हैं । बहुधा सुरुचि ओर शिष्ट व्यवहार के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया जाता है । किंतु सुरुचि और परिमार्जन का वस्तुओं पर भी उपयोग होता है। इसलिए हम बहुधा मुगलकालीन भवनों उद्यानों तथा कलाकृतियों का संदर्भ मुगल संस्कृति के रूप में देते हैं । इसी प्रकार सामाजिक प्रथाएं नियम और पद्धतियां भी सांस्कृतिक वस्तुओं के रूप में जानी जाती हैं । इसीलिए ग्रीकवासियों की राजनैतिक तथा शिक्षा प्रणालियां रोमवासियों की विधिसंहिताएं बहु धा उनकी अपनी संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग माने जाते हैं । अंत में कभी कभी संस्कृति शब्द से और अधिक व्यापक तथा अमूर्त भाव प्रकट होते हैं- अंतिम ध्येय की प्राप्ति का मार्ग या जीवन का मानदंड । जब लोग विवादास्पद रूप से इस बात पर जोर देते हैं कि पूर्वीय संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति को तुलना में अधिक आध्यात्मिक है तब वे शब्द का प्रयोग इसी सामान्य और अमूर्त भाव में करते हैं । हम यह पायेंगे कि
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