mमार्कस का दर्शन | Marks Ka Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ 9181 से मनुष्य में नैसगिक ज्योति का प्रकाश हो सकतीं।हैं। वैज्ञानिक विचार, और सत्य ज्ञान शब्दों की परिभाषा पर निर्भर हैं। परिभाषा व्यापक दाव्दो की रूप-रेखा का वर्णन हँ । न्याय क्‍या हैं? गुण क्या है ? कानून क्या है? सोफिस्टो द्वारा उठाये हुए इन प्रश्नों के उत्तर की खोज के लिए सुकरात ने इसी परिभाषा के यन्त्र का प्रयोग किया। उसने भौतिक और सृष्टिविषषक कल्पनाओ के स्थान पर मानसिकं कल्पनामो को प्रतिष्ठित किया। दार्शनिक खोज के मुख्य विषय रहे हं व्यापक ओर अमू्त शब्द और उनके अथं न कि प्रकृति ओर उसके उपादान, यह्‌ सुकरात का देन हैं। सुकरात-पूर्व दर्शन का प्रयत्न था अपनी युवावस्था के अनुरूप प्राकृतिक घटनाय का सर्वोत्तम व्याख्या करना । सुकरात ने इन प्रयत्नो को व्यर्थ बताया। उसका कहना था कि विज्ञान सिखाया नही जा सकता अर्थात्‌ ज्ञान अनुभव से नही प्राप्त किया जा सकता है) ज्ञान मनुष्य के अन्दर ही है। आवश्यकता उसकी अपुमूति की ह । वाहरी वस्तुओं के ज्ञान की मनृष्य को आवश्यकता नही है। अपने अन्तनि्हित शान को ही विकसित करना आवश्यक हैं। अफलातुन---अफलानून सुकरात का प्रधान शिष्य था। वह विश्व- विख्यात दार्शनिक हो गया हैं। उसके समय से लोग इस अपूर्ण दुनिया से मुख मोडकर अनन्त सत्य के ध्यान में निमग्न रहने लगे। उन्ही के प्रभाव के कारण यूनानी वास्तविकता के विवरणो की ओर ध्यान न देकर अमतं गोर्‌ व्यापक सत्य ओर सिद्धान्तो की खोजमे लगे रहे! इन्द्रियो के अनुभव जीर भ्रयोग हारा नही वल्क केवर विचार गक्तिद्ारया वे इनकी खोज करते रहे। इस रास्ते से वे जिस नतीजे पर पहुँचे वह दर्शन- शास्त्र के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। यह मानकर कि सत्य वही है जो विरोधाभास से मुवत है, वे इस सिद्धान्त पर पहुँचे कि गति या परिवर्तन फी व्याख्या नही की जा सकती) 4 हमेगा विरोघपूर्ण है और इसलिए असत्य है। जो अपरिवर्तनीय है वही विरोघमुक्त है | सत्य नित्य है। परिवर्तन भ्रम हैं। प्र




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