मनोविज्ञान और शिक्षा शास्त्र | Manovigyan Aur Shiksha Shastra
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनोविज्ञान और शिक्षा-शास ५
उस समय आत्मा के विषय सें जो कुछ भी विचार
प्रचलित थे एरिस्टोटल ने उनको एक निश्चित रूप दिया।
उसका यह कथन धा कि किसी जीव की सुख्य वस्तु
आत्मा है। बिना आत्मा के शरीर केबल एक मृत शरीर या
लाश के समान है। जीव जो कुछ है ओर जो कुछ कर सकता
है उसका मुख्य कारण उसकी आत्मा है। कुछ समय
बीतने पर ज्ञानियों ने यह निश्चित किया कि आत्मा को,
जो कि जीव के लिए मुख्य वस्तु है, दो दशाएं होती है। एक बह
जो कि मनुप्य को मानसिक शक्ति प्रदान करती है और दूसरी
वह् जिसके कारण वह धसे-सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त कर सकता है |
मानसिक ओर धर्स-सम्बन्धी यह दो भेद होते ही मनोविज्ञान
मानसिक विज्ञानियो के पास रह गया ओर दूसरे पर दाशेनिक
लोग विचार' करने लगे। इस पर विचार होने लगा कि
मानसिक शक्ति क्या है ओर उसका मनुष्य की देह से क्या
सम्बन्ध है, मानसिक ओर दैहिक शक्तियो जदी जुदी हैं पर
जुदी होते हुए सी एक का प्रभाव दूसरे पर किस प्रकार पड़ता
है। इस सामले पर डकारं ( ७8५६1८8 > नामक एक फरा-
सीसी विज्ञानवेत्ता ने पहले-पहल बिचार प्रकट किये । उसने मन
( 17100 ) और जड़ पदाथे ( 718:08/ ) का मेद् स्पष्ट फर
दिया । उसने कहा ये दोनो ही पदाथे है और इनमे
कोई प्राकृतिक सम्बन्ध नहीं है। जड पदार्थ वह पदार्थ
हे जो कि जगह घेरता है, ओर मन वह वस्तु है जिसे .
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