नीति दर्शन दूसरा खंड | Neeti Darshan Dusra Khand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा खण्ड 1 ५ ~~~ होगा और रू एक तोसरे हो महत्त्वके आधारपर दोनोंपर हो एक संवत्त्व, जेसा ऊपर कहर गया, रखेगर इसो तरह अगणित योश्यताओंके अयणित महात्त्वोंसे असंख्य अप्राकृत स्वत्त्व उत्पन्न हो जायंगे और उनमें सहृक्तकी फसी ब्ेशीके अनुसार स्वत्त्वोस मी तारतस्यतर अवश्य होंगोई साथ हो यह बातमी होगी कि धन या बले चट या बड़ जानेस रुवतो भी तदलुखष्र परिवर्तन ्ोयए। जिसका अथं चह होगा षिः मल्पेक सनुष्यका एर ल्यषरा ही स्वत्व पेदा ही 'जायगा आर चह स्वत्त्व दूसरैंके स्वत्त्व्को बिलकुल नाशकारक भी होगा तो हस नहीं समभ सकते इस को फौनसर क्रम सास, देना चाहिये और इस फथनका सधलऊबघ भी सन्ना हमारे वास्ते तो জনা है। जो छोय कहते हैं कि स्थिति-भहत्त्व स्वत्तन- আহত अद्र्न करता है वही. इखका जयं जानते रोगि । छम तो हसक खर अराजकता या उसानाजिकता या पाश्चविक -अगदृश्वेका निभितत ष्टौ भान फरते ह । अच्छा अब हस प्रफाशान्तरसे सलमुष्यजातिको देखते हैं या इसपर दूधरे ही विचार विन्दुसे बयान द्ते हैं। (९) इस सब सलुष्योस वही एकसी ऐहिक देश्य वाख नाए' दष्णाएं या एघणाए ছে त्यो एक समान देखते हैँ आर यह मी देखते हैं कि इनकी पूर्तिजन्य छुख भोगनेकी सबसे योग्यवाएं भी समान दी हैं। यद्यपि हम यह न कहेंगे कि इनस तारलम्यवए नहीं होती किन्तु कोदे भलुण्य इनसे नितान्त रहित नहीं होता फौर उनके घुसकर आधार भो इन्हीं बासवाओफकी दम्तिपर होता + (६) यह पशसनाएं और दृप्णाए' जहांतक इनका नयारा दी सध्चरस्च है आधीम हैं 'औौर हठात्‌ बना ली गडे हैं। और




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