ईशावास्योपनिषद | Ishavaasyopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ट्
के मनुमार रुक-एक विस्तृत अन्य लिया जा सकता है। एक-एक सन्त्रे
मनुष्य के कत्तेन्य फूट-क्ूट कर भरे हू मानो गागर में सागर समा गया
है | इसी यात को दर्शाने के लिए में एक दो सन्त्रों की थोठी-ली ज्याग्प्या
अपनी घुद्धि के लनुसार लिखता हैं। केउल पहिले मन्त्र की परी व्याख्या
जो मुझे सूम्ती है उसको ही करने लूगू तो बड़ी पुरतक धन जायगी।
अत , दो तीन मन्त्रो की दी वोदी-योरी ब्याध्या हसलिए लिख देता हूं
कि पाठकगण भी उन मन्त्रा पर. चिचार करके भपनी-अपनी बुद्धि के
पनुसार रहस्पार्थ समझ सके } भाग्यक्रार तो कैवल्य मन्त्र के भर्व জীহ
भोदी-मी च्याल्या क्रटतेदै। उन पर ।मनन करनातो पाटफा काकाम
हे] ऋषि ठयानन्द ने जो भावार्थ लिपि ह उन से बहुत-से सकेत उपलब्ध
होते हैं। केवल प्रथम मन््रके भयार्थं मं दही देखिये পতি दयानन्द
रिखते ह --टम सन्त्र के सादेष्ो पर ही क्राचरण करने से मनुष्य
धर्मात्मा होकर इम लोकके सुख शौर परलोक में भी सुक्तिस्प सुख
को प्राप्त करके सदा आनन्द में रहने हैं ।'
इस प्रकार एक मन्त्र को भी यद्वि कोई व्यक्ति अपने भाचरण में
स्थापित कर के तो उससे झुक्ति तक प्राप्त होती है चपि ने अध्याय के
अन्त में जो साराश लिखा है चह दिल छूगा कर पढ़िये | श्रीमती पूर्णदेदी
हर समय सदाचार भीर धम्म का राज्य हस भूमण्डल मे टेखना चाहती
थीं} प्रभु कर कि यह पुस्तक जो उनकी पुण्य स्छूति में लिसी जा रही
है मधिक मे अधिक्र नर-नारियो को सदाचारं एवं धार्मिक क्ृत्यो की भोर
प्रेरित करे ।
छब जाप पहिले मेरे विचागे को पढ़ कर विचार कीजिए | तदुपरान्त
आचाय्यों के भाष्य पढ़ कर अपनी बुद्धि को विस्तृत कीजिए १
अस्ृतधाराभवन उाकुरदत्त शर्स्मा वैद्य
देहराइन
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