प्राचीन भक्त | Parchin Bhakt
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्त सार्कण्डेय मुनि ११
हिंसापरायण हो जाते हैं और देवोंके द्वारा भी नहीं मरते तब मैं मानव-
रुपमें प्रकट होता हूँ और दैत्योंका संहार कर धर्मकी स्थापना करता
हूँ । अपनी मायासे ही मैं सबका संहार और पुनः सृजन करता हूँ;
मैं ही काल हूँ; मैं ही कारचक्रका प्रवर्तक हूँ; में ही अ्ह्म हूँ; मैं
ही सब भूतोंका शमन करनेवाला हूँ | मैं ही सबमें आत्मारुपसे
' खित हूँ। आश्चर्य यह है कि सबमें सदा स्थित होनेपर भी मुझे कोई
नहीं जानता | भक्त छोग सब प्रकारसे भेरी ही पूजा करते है | हे
-विप्रष | तुमने मेरे अंदर जो छेश पाया है, वह तुम्हारे सुख और
कल्याणका ही कारण है | स्थावर-जज्जम जो कुछ भी तुमने देखा है,
भूतभावन मैं उसमें सर्वत्र ही विराजित हूँ; और सब मेरे ही विधानमें
वैष हैं | में ही शह्व-चक्र-गदा-पद्मघारी नारायण हूँ | जबतक हजार
युग नहीं बीतेंगे तबतक मैं विश्वात्मा समस्त विश्वको विभोहित करके
सोया रहूँगा | जबतक ब्रह्मा बिबुद्ध न होंगे, तबतक मैं अशिश्ु होकर
भी शिशुरूपमें रहूँगा | हे विप्रषियोंद्वारा पूजित मुनिवर | मैं तुम्हारे
- प्रति सन्तुष्ट हूँ, इसीसे तुम्हें यह रहस्य बतलाया है | जबतक ब्रह्मा
नहीं प्रकट होते, तबतक तुम यहीं खुखसे रहो | जब लोक-पितामह
সঙ্গত होंगे तब मैं अकेला ही सब भूतोंकी--आकाश, प्रथ्बी, ज्योति,
वायु, जल इत्यादि चराचर पदार्थोकी पुनः सृष्टि करूँगा |?
भगवानकीं दिव्य वाणी सुनकर मह्दान् तपखी भक्त मार्कण्डेय
जतार्थ हो गये। `
. बोलो भक्त और उनके मगवानकी जय |
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