नरीरत्तमला | Narirattmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रानो पद्मावती । (११) आधिक्षणके निमित्त वादशाह मरे पीतमक़ों झच्यसे मिलनेकेलिये तस्व्र्भे भेज ओर उसके अंतिम मिलापके उपरांत मे आपकी सेवामें प्रस्तुत हंगे।। बादशाहने अत्येत आनंदितहो रानाजोंकी कद से छोड तम्वमें राणीसे मिलनेको जानेदिया, तम्बूम रचेहुए जालस शाह अनजानया, वह रानीकी ऐसी छलछ्कपटकी वातोंमें आय मोहबशहो अत्येत उन्मत्त होगया, रानाजी तम्बूके भीतर गण उधर अलाउदीन थोड़ी देस्केपीछे राणी पद्मावती मरी होहीगी और उप्के साथ मनमाना भाग विहा करूंगा इस प्रकारकी अनेक वातोंकी गढठगठ कर हवामें महू वाधरहा था । कि रानीने तम्बरमे पहु चतदी अपने रारवीरोको वादश्ादपर्‌ आक्र मण करनकी आज्ञादी, आज्ञापत्तही असारी क्षत्री एकसाथही बाहर निकलआये । उनको देखते हा बादशाह चोकन्नाहों जीवको ले , कर भागा । वादस्के पिपाहियनि जो पालकी उठांनवालेकि वैरम ये पालकियोमेसे अपने जपने अघ खच वाद्शादी सनाके ऊपर प्रचण्ड आक्रमणकिया । वादशाही सेनामें इतनी भाग पड़ी कि किसने पीछि फिरकर भी नदेखों | वादशाहभी अपने प्राण बचाय छिपरकर भाग निकला ओर महाकष्टसे दिल्ली पहुंचा। बादशाह रानी पद्मावतीके इस छलसे तथा अपनी हुई हानिप्ते अत्यत लजितहुआ और चित्तारपर फिरसे चढाई करनेकी तइयारी | करनलगा । सन्‌ १३०५ ई० में अलाउद्दीनने बड़ी धूमधामसे चित्तोर मट॒पर आक्रमणकिया । एक ख्रीने उसकी नाक काटली इससे वह অন্ন लज्ितहुआथा। इसकारण इससमय वडी শ্রী भाड टेक चित्तौर नगरमें आया। कोधित हुए शाहको चडी धृमधामसे वित्तारपर आया हुआ देख वीरराजएतोंने विचारा कि म्लेच्छोंके इस टोडठीदलके सामने अपना कुछभी बल नचलेगा, ऐसा निश्चयकर उनमे बचनेका उपाय - सोचनेलगे,परंतु जब कोई उपाय ध्यानमें न आया तव यही विचार किया




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