हमारी एडवर्ड तिलक यात्रा | Hamrari Edward Tilak Yatra

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Hamrari Edward Tilak Yatra by गदाधर - Gadadhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ + 7.৭ १ आनन्द सम्बाद्‌ । ২ সিউল ৮৮৯ ~ ~~~ --~ ~~~ ~---~-----~----~-----+- -~ ~~ - ----~- वणमेद्‌ स्यागकर न्यायतुखा पर भारतवासी ओर अंगरेन प्रजा दोनों समान समझी जावेंगी #। वस फिर हमको अविश्वासकी कौनसी वात शेपरही ? आर्य संतानने अपने सच्चे सरल स्वभाव से अंगरेजों को विदेशी और विधर्मी होने पर भी स्वदेशी आर्य नरेश की भांति पूज्य माना ओर वेसीदी दृढ़ भक्ति से इनकी आज्ञा पछन करनेलगी । परमेश्वर ने आधुनिक काट मे अगरेन जाति को राजनीति कुशलता भी ऐसी दे रक्खी है कि जिसके वलूसे यह न केवल देश के अधिपति बने वरन इन्होंने हमारे धन, धर्म ओर स्वभाव सभी वस्तुओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया है । ऐसे सवाधिकारी राजाधिराजको राजभक्त भारतप्रजा अपना इष्टदेव मानकर उसकी पूजाकरे तो क्या कोई आश्चय्यकर নাই ? आश्चय्यं काहे को- हमारे छिए तो यह्‌ स्वाभाविक है।-- मिष्ट कचन से जात भिटि, उत्तम जन अभिमान । तनक शीत जल ते मिटे, जसे दूध उफान ॥ शद्ध हृदय भारतीय प्रजाको बशमें करने के लिए मीठे वचन मात्र ही पय्योप्त हैं सो इसकी वतेमान नरेशों के घर में कमी १ वस राजाने चांहे हमको अपने देशियों [ 89991 5०० দত आश्चर्य है वि. दिल्ली दरबारंम महाशज एडवर्डकी ओर से जो _ घोषणा पत्र प्रकाशित हुआथा उसमें इस बिषयका कुछ उल्लेख नहीं हुआ। अवश्यही यदि श्रीमान अपनी पुण्यवती माताके बचनोंका प्रतिपाल करना _ न चाहते तो किसी न किसी भांति उसका प्रतिबराद करही देते । तोमी - यदि घोषणा पत्रमें इस विषय पर वेभी अपनी सहानुभ्गति प्रकाशित करदेते तो भारत प्रजा का दुगुना बिश्वास होगया होता '




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