माँ | Maa

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Maa by चद्रभाल जौहरी - Chdrabhal Jauhariश्री पतराय - Shri Patray

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चद्रभाल जौहरी - Chdrabhal Jauhari

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श्री पतराय - Shri Patray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ५ ] सीचतता ३, उततका यष्ट ऋत नदी वनता, क्योफि गेकी के चिव मे एक चाया महाद्वाया टी चाहे वह क्यो न दो-नहीं नाच्ती है, वल्क बहुत सी 'बायाएं? ही नावती एँ, जिनके वीद-बीच में सुले भाकाश के घण्वे भी दौखते रहते ६1 प्रस्तु भैने मज्यूरन, व्यावरण की चिता न दरते हुए भ्पने इस भनुवाद में ऐसे स्थाना पर 'छायाएँ? शब्द का दी प्रयेग विया है, जिसके लिए व्याकरण शाल मुस एर ख हेमे तो मै नागरी- प्रचारणी सभा के एक मत्री को अपनी ढाल बनाकर भागे रस दूंगा, क्योकि मेने उनकी सलाह से ही ऐमा करने की शिग्गत की ९ । इसे तरद 'मजदूए शब्द अग्रेमी के 11001- 767 शब्द का पर्यायवाची हो सकता है, परतु ০:10 शाशा शब्द का नहोँ। श्रम जीदीः दब्द ए0% तह शाशा का पर्यायवाची हो सकता था। परन्तु यह शब्द सधारण आदमियो के लिए मुझे विनष्ट जेवा भौर मराठी म पा का 'कमंगारः शब्द उपयुक्त लगा जो कि भारतोय मजदूर-भादोलन में अत्र बदृत प्चलित शब्द हो गया दै। इसलिए मैंने 'कामगाए शब्द फो द्िस्दी में अपना लेने का प्रयत्न किया है, जिम्तके लिए में किठ्ी से क्षमा माँगने की नरूरत नहीं समझता । ०्क भौर शब्द जिसने वी कठिनाई पैदा की, वह श्रैगरेजी का 00107800 शब्द है। श्मका भरनुवाद “মাই, हो सकते या। परंहु 2010- 7206 शब्द भारं और बहिन समी के लिए एक-सा अँगरेजी में प्रयुक्त होता ऐै भौर इस शब्द के पीछे जो भाई-चारे का विचार है, उसमें ख्री और मर्द एक-से दी माने जाते ऐ। अत्त में 00717106 शब्द का अनुवाद करते हुए मर्दों के लिए भाई भौर र्थिणे के लिए बहिन शब्द का प्रयोग करता तो में झापके सामने स्ली-मर्द के एक दूसरे से सम्बंध की जो तस्वीर रखता, वह 'कन्यूनिस्ट फिलासफी! की उस तस्वीर से विर्ङृल भिन्न हो भाती जो ৫0701809 शब्द से श्रेंगरेगी में बनती है । আন্ত मैंने ७०७०॥08 शब्द का अनुवाद শত দিনা हैं और इस शब्द का प्रयोग मर्द भौर सती दोना के लिए एक सा ही किया ई। इसी प्रकार की और भी मुझे यहुत-सी कठिनाश्ये। का सामना ঈরিজম मोक्षे स्स उपन्यास का दिंदी में श्रनुवाद करने में करना पा, क्ये।कि क्रिसी मूल लेखक के ऊंचे चित्रों को अपनी सरल मापा मे उतारना षदा कठिन होता है । फिर भी मैंने यद कठिन काम अपने द्वाथ में ले लिया, उप्तका एक कारण था। वात ये थी कि सव १९३० के सत्याग्रद-आदोलन में जेल दो जाने पर पदिले तो काफ़ी दिन्न तक मुझे खूब सोने से ही फुरसत नहीं मिली, क्योकि बाएर के दिन-रात के लगातार काम से मेंबद़ा थका हुआ जेल में घुमा था। प्रतु जव यई थकरावट चली गई और वम्बई जेल से चालान द्ोकर हमारी नौंजवान थेली नाप्तिक जे पहुँच गई और वहाँ भी जेलवालेा से हमारा शुरू का अपने अधिकार जमाने को सींचा तानी ओर झगढा ट्ण्श खत्म हो गया, तब हमारे दिन्न जेल में कटना मुश्किल हे गये । जेलवाले जो काम इसमें देते थे या दे सकते थे, उसमें तो इमारा जी लगता नहीं था। भरत, एम 8से करते नहीं ये। उन्हेन




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