मधुसूदन सरस्वती | Madhusudan Saraswati

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Book Image : मधुसूदन सरस्वती  - Madhusudan Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 नवद्धीप की ओर शुभ दिन मधुसूदन सबकी अनुमति प्राप्त करके घर से अकेले ही निकल पड़े ! फरीदपुर मण्डल के उत्तर भाग में गंगा की एक शाला पदुमा नदी पूर्व दक्षिण से कुछ टूर बहती हुई ब्रह्मपुत्र नें मिलकर यमुना कहलाती है । वही यमुना दक्षिण दिशा से कुछ दूर वहती हुई मेधना नदी के साथ मिलती हुई मेघना नाम धारण करती है। मेघना की दक्षिण दिशा में बहत्ती हुई समुद्र में जाती है। फरीदपुर बाखरगंज पश्चिम दिशा में मधुमती नामक नदी है । पदुमानदी जरह ब्रह्मपुत्र से मिलती है वर्ह से पश्चिम दिशा मेँ पदूमावती नदी से उत्पन्न मधुमती नदी दक्षिण दिशा मे बहती हुई समुद्र मेँ गिरती है । मधुमती के पश्चिम मेँ यशोहर ओर खुलना मेँ दो मण्डल कुछ दक्षिण दिशा की ओर ह । यशोहर ओर खुलना इन दोनों मण्डलो के पश्चिम भाग मेँ चौबीस परगना ओर मधुमती के कुठ पश्ििमोत्तर में कुठ दूरी पर नवदीप है । मधुसूदन की वही गन्तव्य स्थली है। घर से निकलकर मधुसूदन मे किसी मनुष्य से रास्ते के बारे में पृष्ठा ओर घर से पश्चिम की ओर चल पड़े। तब मधुसूदन की आबु बारह वर्ष से भी कुछ कम थी । इस प्रकार कुछ दिन इधर-उधर धुमकर वे मधुमती कँ पूर्वीय किनारे पर पर्हुचे। इसी रास्ते से वे मधुमती कं टीक किनारे पर पहुँच गये। वहाँ मधुमती को पार करने की कोई व्यवस्था नहीं थी। कोई बस्ती भी वहाँ नहीं थी। मधुसूदन उसी रास्ते से चलते हुए सामने बहती हुई प्रबल धारा युक्त कछुए और मगरमच्छों से भरी हुई तेजी से बहती हुई उस दुस्तर मधुमती नदी में प्रवेश कर गये। इसके अतिरिक्त नदी पार करने का कोई उपाय नहीं था। नौका या नाविक भी वहाँ नहीं थे। जहाँ कहीं भी उनकी दृष्टि गयी वहाँ कोई झोंपड़ी या घर अथवा नदी को पार करने का कोई साधन दिखायी नहीं दिया। इस अवस्था में स्वयं को वे निरुपाय मानकर भगवत्ती गंगा की शरण में चले गये। मधुमती नदी के पूर्व भाग के' किसी किनारे पर एक जगह बैठकर उन्होंने एकाग्रसन जाहनवी मन्त्र कां जप किया। तब जाहूनवी देवी मधुसूदन की भक्ति से प्रसन्‍न होकर उनके सम्मुख प्रकट होकर बोली-बेटा, मैं तुमसे प्रसन्‍न हूँ। मुझसे वरदान माँगो। मधुसूदन बोले, हे माता! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे इस नदी को पार करने के उपाय के माध्यम से भवनदी को पार करने का उपाय बताएँ और यदि आप मुझ पर प्रसन्न




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