मधुकरी | Madhukari

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Madhukari by विनोदशंकर व्यास - Vinodshankar Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रभा ३ ही घनकृष्णकेशी गोधूमवर्णा वेश्य-तरुणियां थीं, जिनका अचिरस्थायी मादक तारूण्य कम श्राकष॑क न य। | श्राज सरयूतट पर साकेत के कोने-कोने की कौमायं रुपराशि एकत्रित हुई थी | तरुणियों की भांति नाना कुलों के तरुण লী লগা লক उतार नदी में कूदने के लिए तेयार थे । उनके व्यायाम-पुष्ट, परिमंडल सुन्दर शरीर कपूर से गोधूम तक के वणु वाले ये | उनके केश, मुख, नाकपर च्रास- ए्वास कुलो की ह्वाप यी | श्राजके तेरा की महोत्सव से बढ़कर अ्रच्छा अवसर किसी तरुण-तरुणी को सोन्दर्य परखने का नहीं मिल सकता था | हर साल इस श्रवसर पर कितने ही ख्वयंवर सम्पन्न होते थे | मां-बाप तरुणों को इसके लिए उत्साहित करते थे । उस वक्त का यह शिष्टाचार था | नाव पर सरयू-पार जा तैराक तरुण-तरुणि्यां जल म कूद पड़े | सरयू के नीले जल में कोई अपने मुवर्ण, पण्डु, रजत या रक्त दीर्ध केशो को प्रदशित करते श्रौर कोई अपने नीले-काले केशों को नील जल में एक करते दोनों मुजाश्रों से जल को फादते आगे बढ़ रहे थे | उनके पास क्तिनी ही कछुद्र नोकाएं चल रही थीं, जिनके श्रारोही तरुण-तरुणियों को प्रोत्साहन देते तथा थक जाने पर उठा लेते थे--हजारों प्रतिस्पद्धियों म॑ कुछ का हार स्वीकार करना सम्भव या | सभी तैराक शीघ्र आगे बढ़ने के लिए पूरी चेष्टा कर रहे थे | जब तट एक तिहाई-दूर रह गया, तो बहूत- से तैराक शिथिल पड़ने लगे । उस वक्त पी से लपकते हुए केशों में एक पिंगल था ओर दूसरा पाण्डुश्वेत | तट के समीप आने के साथ उनकी गति और तीत्र हो रही थी। नाव पर चलने वाले साँस रोक कर देखने लगे। उन्होंने देग्वा कि दो पिंगल थ्रीर पाण्डुश्वेत केश सब से आगे बढ़कर एक पाती में जा रहे हैं | तट और नज़दीक झा गया | लोग ग्राशा रखते थे कि उन में से एक आगे निकल जायगा; किन्तु देखा, दोनों एक ही पाँती मं चल रहे हैँ । शायद नोकारोहियों भें से किसी ने उन्हें एक दूसरे को आगे जाने के लिए जोर देते सुना भी । दोनों साथ हो तर पर पहुँचे | उनमें एक तरुण था श्रोर दूसरी तरुणी | लोगों ने हपप्वनि की । दोनों ने कपड़े पहने | खुली शिविकराश्रों पर उनकी सवारी निकाली गई | दशकों ने फूलों की वर्षा की | तरुण-तरुणी एक दूसरे को




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