कृषक जीवन संबंधी ब्रज भाषा शब्दावली | Krishak Jeewan Sambandhi Brij Bhasha Shabdawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १) और अपनी मंथर गति से चल भी रहा था | लेकिन फिर सन्‌ १६५२ ई० मे मैंने' अपने संग्रह-कार्य को डी० फिलू० की उपाधि की आशा से एक शोध का रूप देना चाहा और प्रयाग विश्वविद्यालय में जाकर आन्रार्यवर डा० धीरेद्ध वर्मा - से प्रार्थना की कि वे मुझे अपना शिष्य बंना लें | उदारचेता श्रद्धेय डाक्टर सहव ने मेरी प्रार्थना तो स्वीकार कर ली, किन्तु कुछ अपरिहारय॑ कारणबश मुझे अपने कालेज से दो वर्ष का अध्ययनावकाश न मिलन सका, ताकि मैं प्रयाग-विश्वविद्यालय का शोध- छात्र बनकर अपना कार्य कर सकता | अपनी अमभिलाषा की“ पूर्ति होती हुई न देखकर मैं कुछ चिन्त्य परिस्थिति में भी रहा, किन्तु अन्य योग्य निर्देशक को मः लोजती रहा | अन्त मे सौभाग्य से परम पूज्य डा० वासुदेवशरण अग्रवाल जैसे शब्द-प्ररखी गुरुवर को पाकर मैं आगरा- विश्वविद्यालय के शोध-छात्र के रूप में अपने अनुसन्धान का कार्य करने लगा | मेरे इस शोध. कार्य की पूर्व पीठिका में यही छोटी-सी कहानी है । वी ` ध 4 78 -. अलीगढ़-क्षेत्र की बोली के आधार पर यह शब्द-संग्रह 'कृपक-जीवन-सम्बन्धी ब्रजभाषा-शब्दा-.. वली' के नाम से तैयार किया गया है। इस- शब्दावली में केवल शब्दों का ही संकलन नहीं है, अपितु पचलित लोकोक्तियाँ और मुहावरे भी संकलित किये गये हैं | मैंने स्वयं अलीगढ़ जिले तथा उसके संक्रमण क्षेत्रवाले सीमावतों जिलों के गाँवों में घूम-घूमकर शब्दों तथा लोकोक्तियों का संग्रह किया है | संकलंन का कार्य विशेषतः अशिक्षित इद्ध आमीण मनुष्यों और स्त्रियों के मुख से निकली हुई वाक्यावली से ही किया गुया है । प्रस्तुत प्रबन्ध में जनपदीय शब्द व्यापक रूप में बड़ी सूक्म চি से एकत्र किये गये हैं और পন্য ই अनुच्छेदों में वे स्पष्टतः दृष्टिगोचर हो सके, इस विचार से उन्हें मोटे अक्षरों में भी कर दिया गया है। जो शब्द जिस तहसील अथवा परगने में अ्रधिक -अंचलिते हैं, उसके आगे उसका स्थान भी लिख दिया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि वह विशेष , शब्द अन्य स्थानों में बोला नहीं जाता । द | जहाँ तक संभव हो सका है, वहाँ तक कुछ जनप्रदीय शब्दों की व्युत्पक्तियाँ भी साथ-साथ लिख दी हैं | शब्दों का क्रमिक विकास दिखाते हुए. उनकी प्रयोग-पुष्टि के लिए. पाद-टिप्पणी के रूप में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्र श, हिंदी, अरबी तथा. फारंसी आदि के ग्रन्थों से उद्धरण तथा प्रमाण _ भी 'दिये गये हैं और संकलित लोकोक्तियों के अर्थ भी लिखे गये हैं | प्रबंध मेँ संग्रहीत संपूर्ण शब्दों की संख्या लगभग चौदह हजार हैं, और लोकोक्तियाँ पाँच सो के लगभग हैं | रु . शब्द-संग्रह का कार्य कुछ नीर॒संब्सा है; झतः विषय .को रोचक . तथा मोधगम्य बनाने के | लिए ने एेखी वशुनासक तथा विवर्णात्मक पद्धति को श्रपनाया है जिसके द्वारा कृषकों तथा : शिल्पकारों की संस्कृति एवं क्रियाकलापों का परिचय भी प्राप्त हो जाता है | वस्तुओं के नामों तथा रूपों ্ को स्पष्ट करने के लिए यथा-स्थान आवश्यकतानुसार रेखा-चित्र तथा चित्र (फोटोग्राफ) भी दिये गये हैं और प्रत्येक प्रकरण को अध्यायों यें तथा प्रत्येक अध्याय को अनुच्छेदों में विभक्त करके लिखा गया है। | : अलीगढ़ क्षेत्र की बोली का यह शब्द-संग्रह हिन्दी-जगत के लिए प्रथम मौलिक प्रयास है । अन्य कुछ क्षेत्रों में तो ऐसा कार्य पहले हो चुका है | सन्‌ १८७७ इईै° में श्री पैट्रिक कारनेगी ने कोश के रूप में 'कचहरी टैक्नीकलिटीज्ज१? के नाम से एक शब्द-संग्रह प्रकाशित कराया था |» एक वरा शब्द्‌ संग्रह कोश के ही सूप मं श्री विलियम দু का है जो (ए रूरल एण्ड ऐग्रीकल्चरल পিপি? ` भाक) इलाहाबाद मिन स, द्वितीय संकर, सन्‌ १८०७.द० | , ` ` ; श, ५.




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