तुलसीदास रचित रामचरितमानस | Tulsidas Rachit Ramcharitmanas

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Tulsidas Rachit Ramcharitmanas by शर्लोक वोदविल - Sharlok Vodvil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ : रामचरितमानस मानस से उद्धृतं कई एसे स्थलों की भी सूची दी है जिनमें वाल्मीकि के ग्रन्थ की ^ प्रतिध्वनि ' मिलती है. यहाँ तक कि उन्होंने वाल्मीकि के ग्रन्थ के उन संस्करण विशेषों तक को निर्धारित करने का प्रयास किया जिनका तुल्सीदास ने अपने ग्रन्थ के विभिन्न भागों में आश्रय लिया | तुल्सीदास की और वाल्मीकि की कथा में जो अनेक विपमताएँ हैं उनका समाधान करने के लिए बे तुलसीदास की स्मरण शक्ति अथवा अन्य प्रकार की भ्रान्ति को दोषी ठहराते हैं। इस पर भी, स्वयं टेसियोरी ने कुछ संकोच प्रगट किया ओर कहा । “ केवल (वाल्मीकि कृत) रामायण पर ही आश्रित होने से इन निष्कर्षों का अस्थायी प्रतीत होना स्वाभाविक है। हमें ज्ञात हे कि तुल्सीदास ने ब्रह्माण्ड पुराण के अन्तर्गत विद्यमान, रामायण के रहस्यात्मक ^“ रूपान्तर ”', अध्यात्मरामायण का प्रयोग भी किया था। इस मूलाधार का अध्ययन करने पर ही रामचरितमानस के खोतों में (वाल्मीकि) रामायण की प्राथमिकता अन्तिम रूप से सिद्ध होसकेगी । परन्तु कुछ मिलाकर यदि रामायण को जो प्राथमिकता हमने दी है उसमें कुछ संकोच भी हो तो भी प्रस्तावित सामान्य निष्कष सर्वथा निश्चयात्मक हैं | >“मानस के आरम्मिक संस्कृत छोक में तुल्सीदास ने स्वयं मूलाधारों का उल्लेख किया है: अनेक पुराण, निगम, आगम और रामायण तथा कुछ अन्य ग्रन्थों (क्चिदन्यतोडपि) के अनुरूप ही उन्होंने रामकथा का वर्णन किया है। भारतीय टीकाकारों के अनुसार इन “अन्य ग्रन्थो” म अध्यात्म रामायण तथा भुशझुण्डि रामायण जैसी अन्य रामायणे और हनुमन्नाटक (महानाठक) और प्रसन्नराघव जैसे कुछ नाटक सम्मिलित हैं। टेसियोरी के अध्ययन की समालोचना करते हुए. ग्रियर्सन ने उनके सिद्धान्त की दुर्बलता की बतल्यया और कहा कि टेसियोरी ने अवाल्मीकीय अन्य मूलाधारों को कोई महत्व नहीं दिया। रामचरितमानस के अन्य आधारों का अध्ययन करने से वाल्मीकि की रामायण और मानस की विषमताओं को, टेसिटोरी के प्रयास की अपेक्षा, अधिक सरलता से समझा जा सकता है। ग्रियसन के पश्चात्‌ आने वाले भारतीय समीक्षकों ने रामचरितमानस के मूल्यधारों की समस्या की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया है। ये सब तुल्सीदास के विस्तुत अध्ययन की प्रशंसा करके ही संतुष्ट रहे दै ओर रामचरितमानस पर संस्कृत साहित्य के प्रभाव को दर्शाते है। राम नरेश त्रिपाठी | या शिवनन्दन सहाय * जैसे कुछ विद्वानों ने (संदर्भ दिए. बिना) अनेकों ऐसे उद्धरण दिए हैं जो मानस में संस्कृत ग्रन्थों की छाया के परिचायक हैं। शिवनन्दन सहाय ने तो वाल्मीकि रामायण और अध्यात्म रामायण से रामचरितमानस की ठुलना को एक पूरे अध्याय में प्रस्तुत किया है। उनका प्रयास सराहनीय है यद्यपि वे टेसियोरी के अध्ययन से अनभिज्ञ हैं; उनका विवेचन पल्लवग्राही भी है । रे काक 0 |] २ ज. रा, ए. सो, १९१२ प्ृ० ७९७ | * पृ० २९३ इत्यादि । 3 ४ थ्री गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन चरित ?”, बांकीपुर १५१९५, द्वितीय भाग अध्याय २८ । ४ बड़ी दितीय भाग अध्याय ३० ।




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