परिवर्तन | Parivataran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Parivataran by सुदर्शन - Sudarshan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुदर्शन - Sudarshan

Add Infomation AboutSudarshan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ন্ট ठ भाई ! मैंने जी खोलकर दुनिया की बहार छूटी । रुपया, रूप, यौवन, संसार-वाटिका के यह तीन ही मीठे फल हैं, भेरे पास तीनों थे। में अयनी तारीफ नहीं करता। मगर यह कहे बिना न रहेँगा कि में साधारण अगरेज़ों से ज्याद सुन्दर हूँ कमसे कम छोग ऐसा ही सभ- झते हैं| मुझमें रद्ग की विशेषता नहीं, हर एक अगरेज़ का रह्ञ सफेद हे । मगर मुझ जे ले भारतीय नकश अँगरेज़ों में कह; हैं ? उन्होंने कई स्त्रियों का सबेनाश कर दिया। में उनके हृदयों से खेलता था, उनसे हँसता था, मगर सभ्यता की भमय्योंदा का कभी उलंघन नहीं किया। यहाँ तक कि एक लड़की स्टीछा ने अपनी सुन्दरता की सम्पूर्ण शक्ति से मुझ पर आक्रमण किया | यह लड़की लड़की न थी, क्नाफ की परी थी। उसका रूप मन को मोह लेनेवाला था | वह साधारण अगरेज़ लड़कियों की नाई ओछी न थी, न बात-बात में दाँत निकाल-निकालकर खल- खिला उठती थी | वह লিক मुस्कराती थी। मेरा मन लटटू हो गया । स्टीखा मेरी दुकान पर प्रायः आने-जाने लगी । मँ उसे सबसे पहले 2১0০1 ক্হলা था, ओर यत्न करता था, कि उसे मेरी दुकान पर ११




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now