देवराज उपाध्याय की स्वच्छन्दतावादी समीक्षा - दृष्टि | Devaraj Upadhyay Ki Swachchhandatavadi Samiksha-drishti

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Book Image : देवराज उपाध्याय की स्वच्छन्दतावादी समीक्षा - दृष्टि  - Devaraj Upadhyay Ki Swachchhandatavadi Samiksha-drishti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यक्तित्व की रेखा ५ मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी इस ग्रंथ के अन्तिम अनुभाग में प्रस्तुत किया गया है ] कुल मिलाकर उनकी समीक्षा दृष्टि अन्तध्मन की गंगा में गोता तो लगाती ही हैं साथ ही, उस गंगा को उपन्यास विधा, इन सबके माध्यम से विश्लेषण का आधार मिलता है। भनोवृत्तानुवर्ती आख्यान रचनाः मे डं० देवराज उपाध्याय ने अपने चिन्तन को दो खण्डो मे बोट दिया है । खण्ड एक मे मानव प्रवृत्तिर्यो, कला : एक जैविक प्रवृत्ति-आदतें ओर मनोविज्ञान, विचार स्वातन्त्रय, परिस्थितियों के साथ सामंजस्य तथा दूसरे खण्ड के अन्तिम अनुभाग मे आख्यान ओर जीवन की मनोवृत्तियों को अपने विश्लेषण का आधार बनाया है । यह शोध-ग्रन्य डं ० देवराज उपाध्याय ने अपने जीवन की अन्तिम क्षणो मे उन्होने जोधपुर विश्वविद्यालय से अवकाश ग्रहण कर, मगध विश्वविद्यालय बोधगया के, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग हर प्रसाद जैन कालेज से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के (अपना शोध परिकल्प तथा परियोजना” के अन्तर्गत पूरा किया था । इस ग्रन्थ के माध्यम से डं० उपाध्याय साहित्य की अवधारणा मे मनोवैज्ञानिक आन्तरिक चिन्तन की चहारदिवारी से अगे बढ़ते हैं और विचार स्वातंत्र्य, परिस्थितियों के साथ सामंजस्य तथा कल्पना जर सत्य को साहित्य की व्याख्या के लिए अनिवार्य मानते हैं। ऐसी स्थिति में उनकी समीक्षा दृष्टि अनुभूति एवं परिवेश, वैयक्तिकता एवं सामाजिकता तथा आदर्श और यथार्थ की समन्वित चेतना से काव्य की उत्कृष्टता को उभारती है । यही कारण है कि आधुनिक समीक्षकों ने स्वच्छन्दतावादी अवधारणा को केवल आन्तरिकता एवं वैयक्तिकता से जोड़कर नहीं रखा है । आज स्वच्छन्दतावादी कला अन्त एवं बाह्य का मिलन है ओर एेसी स्थिति मे मनोवैज्ञानिक समीक्षक के रीउ में इम्होने समटिगत कला वैशिष्ट्य को कल्पना ओर सत्य विचार स्वातंत्र्य के साथ परिस्थितियों के सामंजस्य को उत्कृष्ट कला के निष्कर्ष का आधार बनाया | इस प्रकार इस अद्यतन वैचारिकता को अपनी समीक्षा-दृष्टि से आत्मसात्‌ करने के संदर्भ मे वे साधुवाद के पात्र हैं। “विचार के प्रवाह” डॉ० देवराज उपाध्याय की एक अन्य कृति है । उन्होने इस पुस्तक मे महादेवी वर्मा की आलोचना-पद्धति, आधुनिक काव्य, कविताएँ 1954 संकलन, वर्षन्त के बादल, अचल, बोलो के देवता (सुश्री सुमित्रा कुमारी सिन्हा) तथा साहित्य में कल्पना तथा इतिहास, सत्य का महत्त्व आदि को अपने अनुशीलन-विश्लेषण का विषय बनाया है। इस प्रकार इस ग्रन्थ में भी डॉ० उपाध्याय ने काव्य और साहित्य के लिए कल्पना तथा इतिहास, सत्य को साहित्य की व्याख्या के लिए अनिवार्य माना है। उनकी आलोचना में मौलिक तत्वों का विवेचन विश्लेषण अधिकतर किया जाता है। “विचार के प्रवाह में कुछ निबन्ध वैयक्तिक निबन्धो की श्रेणी में आते हैं जैसे “मेरी दिल्ली यात्रा', 'असुविधा का उपयोगः, एकं पत्र आदि इनमें जिस आत्मीयता के साथ बाते की गयी हैं, हृदय की तस्वीर जिस सच्चाई के साथ खीची गयी अन्यत्र दुर्लभ है । | डॉ० देवराज उपाध्याय की कृति “विचार के प्रवाह” की प्रशंसा में भी विश्वनाथ प्रसाद के निम्न शब्द द्रष्व्य हैं “विचार के प्रवाह में उपाध्याय जी के मानस-प्रदेश या हृदय-प्रदेश में एक नये बीज को अंकुरित होते देखा जा सकता है। उसी तरह से जैसे पत्थर को फोड़कर हरियाली पंक्ति झाँकती हो - 1. विश्वनाथ प्रसाद : श्शिक्ा-किदार के ভা 2. वही, भूमिका, 'विचार के प्रवाह




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