जैन गीता | Jain Geeta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्मत्यर्थ / समीदा हेतु / भेंट
प्रज्शशक / सम्पए :
संघ नमस्कार
पु; सबंपा पे
श्री झ्राचा्य विद्यासागर जो
चरण जहाज बैठ मुनिवर जीभव समुद्र को तरण चले हैं
नगर-नगर से नर नारी जन भुक भुक शीश प्रणाम करे हैं
ग्रष्ट करम के नाश करन को निज में निज पुरुषार्थ करे हैं
ऐसे विद्यासागर मुनि के चरण कमल हम नमन करे हैं
वीना वारहा के गजरथ में बात मम की एक कहे हैं
इक नदिया के दोय किनारे निदचयश्रौर व्यवहार कह टै
एसी श्रनुपम वाणी सुनकर जन जन जय-जयकार करे है
म विद्या के सागर को बार बार परणाम करे हैं
श्री एलक दशन सागर जी
एनक दर्शन सागर जी भी दशं ज्ञान श्रारुढ़ भये हैं
द्रव्य करम का उदय देखकर भाव करम कछ नांहि करे हैं
संवर सहित निजरा करके मुक्ति रमा को वरण चले हैं
ऐसे ऐलक जी को लखकर भाव सहित हम नमन करे हैं
श्री एलक योग सागर जी
ऐलक योगी सागर जी भी मुद्रा सहज प्रफुल्ल धरे हैं
दक्षन ज्ञान चरण पर चलकर रत्नत्रय की श्रोर बढ़े हैं
श्राहातो में श्रन्तराय लख करम निजंरा सहज करे हँ
ऐसे योगीराज को भी हम योग लगाकर नमन करे हैं
User Reviews
No Reviews | Add Yours...