गद्य गरिमा | Gady Garima

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ७ गद्य की भाषा बविस्व-विधायिनी हो जाती है तो वह लालित्यपूर्ण होकर पद्य के निकट भा जाती है भौर पद्य की भाषा जब तथ्यपरक और वर्णनात्मक होती है तब वह गद्य की प्रकृति के निकट आ जाती है। इस विवेचन से सिद्ध है कि भावतत्त्व, गद्य और पद्य दोनो के लिए अपेक्षित है। अन्तर इतना ही हैं कि पद्य मे उसका आधिव्य और प्राधान्य होता हैं, जवर्कि गद्य मे वह विचारतत्त्व के साथ संतुलित होता है । अत: भावतत्त्व और विचारतत्त्व का सठुलन उत्तम गद्य की कसौटी ठहरता है । उत्तम गद्य की आन्तरिक पहचान हुई : भावतत््व और विचारतत्त्व का सतुलन । गद्य की विभिन्‍न विधाओ में इस सतुलन के स्वरूप मे सापेक्षिक भिननता लक्षित की जा सकती है, अर्थात्‌ कही विचार का पलड़ा भारी हो जाता हैं तो कही भाव का । उत्तम गद्य की इस आन्तरिक पहिचान के अनन्तर, अव उसकी बाहरी पहिचान पर भी विचार करना भावश्यक है । प्रारंभ मे ही कहा जा चुका है कि गद्य वाक्यवद्ध विचारात्मक रचना होती है ।” इसी में उसकी बाहरी पहिचान वतला दी गयी है अर्थात्‌ 'वाक्यवद्धता' । आशय यह है कि विपय और परिस्थिति के अनुरूप शब्दों का सही स्थान-निर्धारण तथा वाक्यों की उचित योजना ही उत्तम गद्य की कसौटी है । प्रयोग और प्रयोजन की दृष्टि से गद्य की भाषा के तीन प्रकार बताये जा सकते हे--दैनिक व्यवहार की भाषा, शास्त्रीय विवेचन की तकंपुर्ण भाषा भौर साहित्यिक ललित भाषा । इनके अतिरिक्त लेखक के व्यक्तित्व एव मन:स्थिति भौर विषय के स्तर के आधार पर भी गद्य की विभिन्‍न शैलियाँ जन्म लेती है, यथा- समास, व्यास, धारा, विक्षेप, तरंग आदि शैलियाँ । गद्य की विभिन्‍न विधाओ के लिए एक ही शैली काम नहीं दे सकती । इनमे शब्दों के चयन, मृहावरो, सूक्तियों भौर सूत्रो आदि के विविध प्रयोग, वाक्यो के दीघं और लघु विन्यास तथा उद्देश्य गौर विधेय के क्रम-परिवतंन द्वारा, गद्य-विधान के अनेक रूप सघटित किये जा सकते है । विभिन्‍न गद्य-विधाओं--निबंध, नाटक, कहानी, संस्म रण, एकाकी, रेखा चित्र, रिपोर्ताज, यात्रावृत्त, जीवनी, डायरी, पत्र, भेट-वार्ता आदि--मे' गद्यशली के प्रयोग-वैविध्य को देखकर आश्चयं होता हैं । वस्तुतः आज गद्य-साहित्य जीवन की प्रत्येक स्थिति और गति को व्यक्त करने में सम है । इसलिए उसके शैलीगत भेद पद्य-भैली के भेदो-प्रभेदो से भी अधिक हो गये हूं। इसलिए हिन्दो-गद्य के समग्र रूप एव सपूर्ण शक्ति के विकासात्मक परिचय के लिए उसके क्रमवद्ध इतिहास का अध्ययन आवश्यक है ।




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