हमारे पुराने नगर | Hamare Purane Nagar

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Hamare Purane Nagar by उदयनारायण राय - Udaynarayar Rai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ | नगरों की उत्पत्ति और विकास [ই तैसे गाड़ दी गईं । पर, दूसरे तरह की कढ्रों में पूरा अस्थि-पंजर जीवन में काम ग्राने वाली चीजों के साथ दफनाया गया । कुछ ऐसी घारणा थी कि मरे व्यक्ति को दूसरे लोक की यात्रा में वे साथ देती हैं । इस तरह का विश्वास बाहरी देशों में भी उस समय था। मिस्र और मेसोपोटामियाँ की बहुत पुरानी कब्रों में अनाज के दाने और श्रृंगार के काम में आने वाली वस्तुएँ मिली हैं । मोहनजोदड़ो का किला भी उसी सिद्धान्त पर बना हुआ था! इसके भीतर किसी मकान के आँगन के बीच एक बड़ा जलकुण्ड खुदा हुआ था, जो ३९ फीट लम्बा, २३ फीट चौड़ा और ८ फीट गहरा था। इसके चारो ओर सीढ़ियाँ बनी थीं ताकि स्नान करने वाले व्यक्ति आसानी से नीचे उतर सकें | जलकुण्ड के चारो ओर बरामदे बने थे, जिनके पीछे हर दिशा में कोठरियाँ और गलियारे भी थे । इन्हीं कोठरियों में एक में कुआँ खुदा था, जिससे कुण्ड में पानी भरा जाता था। इनकी छत पर एक मंजिल और भी बनी थी जिसमें उसी तरह बरामदे, गलियारे और कोठरयाँ थीं । ऊपर पहुँचने के लिये सीढ़ियाँ बनी थीं जिनके खण्डहर प्राप्त हुए हैं। पूरी इमारत के निर्माण में पक्‍की ईंटों को इस्तेमाल में लाया गया था। बाहर से यह भवन १८० फीट लम्बा और १०८ फीट चौड़ा था। पुरवासियों के सामाजिक जीवन में इस जल-कुण्ड का विशेष महत्त्व था। नागरिक खास मौकों पर इसमें नहाकर दिल-बहलाव करते थे। इस प्रकार के भवन का नमूना दुनियाँ के अन्य किसी भी देश में नहीं मिलता । इससे जाहिर है कि हमारे कारीगर अपनी कला में बड़ी ऊँची दखल रखने वाले थे ग्रौर उनकी प्रतिभा मौलिक कोटिको थी। इस जलकुण्ड से कु दूर हट कर अनाज का एक बड़ा बखार बना हुआ था। अपने समय के हिसाब से यह भी एक बड़े ही अचरज की चीज थी। अधिक से अधिक अनाज इकट्ठा किये जाने के लिए राज्य की ओर से यह बना हुआ था। विद्वानों का ऐसा अन्दाज है कि इसमें इतना अन्न आसानी से आ सकता था कि इससे महीनों तक सैकड़ों मजदूरों को मजदूरी दी जा सकती थी। अकाल पड़ने पर जनता को इसमें से अन्न बाँठ कर उसे भूखमरी से बचाया जा सकता था। यह एक मजबूत ऊँचे चबूतरे पर बना था। लम्बाई में यह १५० फीट और चौड़ाई मे ७५ फीट था । बखार के भीतर छोटें-बड़े कुल २७ खाने बने थे, जिनकी भीतरी दीवालों में छोटे-छोटे छेद बना दिये गए थे जिससे अन्दर हवा का आना-जाना सम्भव हो सके । बाहर से यह एक दुर्ग की तरह दिखाई देता था। विदेशों में भी बखार बनाये जाते थे, पर इसकी तुलना में वे फीके पड़ जाते थे। यह इस बात का सबूत है कि हमारी कला उस समय बेजोड़ थी।




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