आचार्य रामचंद्र शुक्ल | Aacharya Ramchandra Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपक्रम स्मृति के प्रति मेरी कितनी उत्लाठा रही होगी, यहां अनुमान करने की बात 1 कहने की आवश्यकता नहीं कि यह सजीव स्थृति' ग्रेमघन जी ही थे । अपनी ६ मित्र-मंडली के साथ ये ग्रेमबन” की पहली ककः मीने आए थे। इस प्रकार देखते हैं कि शुक्ल जी का बाल्य-काल साहित्यिक विभृतियों के श्रवण, स्मरण : + 4৯. दशन से प्रभावित ह्र । किशोरावस्था में प॑० केदारनाथ पाठक से परिचय होना भी शुबल जी के साहित्यिक ২৯৮০ ০১৬ ৭১৬ বানর [व भ ২, जीवन में विशेष महत्त्व रखता है। इनके सोहित्यिक जीवन को अग्रसर और प्रोढ़ करने में अवश्य ही उन्होंने सहारे का काम किया । इन्द नागरीप्रचारिणी सम मेँ लागे में भी उन्हीं का प्रधान हाथ था । पं» केद्रनाथ पाठक ने मिजापुर में ॥ मेमोरियल लाइज्रेरी' खोली थी । शुक्ल जी को यहाँ से अँगरेजी और हिंदी টিনা भाषाओं की पुस्तकें पढ़ने को मिलती थीं | शुकक्ष जी के लिए हिंदी-पुस्तक एकन्र ; में पाठक जी की विशेष प्रबंध करना पड़ता था, क्योंकि वै चाहते थे कि ये हिंद पुस्तकी का अवलोकन करें । हिंदी की ओर शुक्ल जी की यब्त्ति तो थीं ही । प्रकार प॑> केदारनाथ पाठक शुक्ल जी में अभ्ययन फी प्रदृति जगाने ओर ৃ गीन- बृद्धि करने में सहायक हुए । शुवल जी में अध्ययन का व्यसन आरंभ से ही था গং यह अंत तक बना रहा । पिछले काल इन्हें प्वास और खाँसी का रोग हो गया भा । रोग की अवस्था में भी यह व्यसन नहीं छूट पाता था । देखा गया है कि ये ॥ जाते थे और पढ़ते जाते थे । लगमग पंद्रह-सोलह वर्ष की अवस्था में शुक्ल जी को ऐसी साहित्यिक £ भंडली मिल गई जिसमें निरंतर साहित्य-चर्चा हुआ करती थी। अब हमारे शुब यौ. सी हसं सते समु जी आपमें को हिंदी का एक लेखक समझने लगे। 'प्रेमघम की लाया-ष्परतिः नामक लेख में आपने एक स्थान पर लिखा है---““१६ वर्ष की अवस्था तक १ तौ समवरयस्क दिंदी-ममियों की एक खापरी मंडली शुभे मिल ग । जिनये १ काशीप्रसाद जी जायसवाल, बा० भगव्रामदास जी दालना, 'पंर बद्रीनाथ गौड़, हू {र পৃ अगला कर पे ग॒ुद्य मे ! हिंदी के नए-पुराने लेखकों की चर्चा, बरावर इस भैडली' त त प्र में रहा करती थी । म भी श्रव श्रप्तै कौ एक लेखक सानन्ने लगा था। हम सीमे की बातचीत प्रायः लिखने-पढ़ने की हिंदी में हुआ करती थी, जिसमें “विस्सदिह! इत्यादि शब्द आया करते थे ।” अब इनकी सूरत” पर. हिंदी का. शौक! पालक




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