स्नेह - यज्ञ [भाग - 2] | Shnehe - Yagya [Bhag - 2]

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Book Image : स्नेह - यज्ञ [भाग - 2] - Shnehe - Yagya  [Bhag - 2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৯৮ नारीब और अमीर के लड़के में झन्‍्तर नहीं सममनेवाले इस लहरी -झुवक पर वह हँव दिये श्रोर दोनो का अन्तर समझकाकर किरीट के मले के लिए श्रन्त में यह सीख कई सुनाई : बराबरी से कीजिये ब्याह, बैर अरू प्रीति किरीह इजार रुपए ले तो आया ; परन्तु इस रकम ने उसकी चिन्ता बढ़ा दी । यह रक्षम सभालकर कहाँ रखी जाय ! जैसते-तैसे कर उसने इन रुपयों को छिपाकर रख दिया। उसी दिन उसने मीनाक्षी के पिता को पत्र लिखा ऊ# श्रपनी मा की बीमारी के कारण वह मीनाक्ञी को पढ़ाने का काम कर ने सकेगा--उसकी मा सचमुच बीमार थी, और उसे पूशा-पूरा विश्राम देने की डाक्टर ने सलाद दी थी। भोजन बनाने का काम तक उससे लेना श्रसंभव था, इसलिए किरीट का कुछ समय इसमें लग जाता था | फिर परीक्षा का समय बहुत লক্ষ श्रा जाने से पढ़ने का समय भी कम नहीं किया जा सकता था । इन दो कारणों से उसने पढ़ाना बन्द कर दिया, परन्तु श्रन्द्र से उसके घायज्ञ श्रपिमानी हृदय ने तै ह्षिया कि सब लोगों की इ6 मान्यता को ग्रसत्य किया जाय कि सीनाक्षी का प्रेम जीतने में उसने, उसे पढ़ाते समय मिलनेवाले श्रवसर से लाभ उठाया है। मीनाक्षी यदि उसे सचमुच चाहती होगी तो बिना पढ़ाये भी चाहिगी। मीनाक्षी के पिता को कुछ समय: से किरीट के विदद्ध पत्र मिलने 'छगे थे | उनमें चेतावनी दी गई थी कि फिरीट मीनाक्तीको फुषलाकर ' बुरे रास्ते ले जायगा । यद्यपि मीनाक्षी के रिता को किरीथ से कुछ भी शिकायत नहीं थी फिर भी उन पन्नों को पढ़कर बह किरीद और मीमाज्ञी पर नजर रखने क्षये । उस दिन उन्हें एक पत्र मिला। उसमें यह यह अपराध लगाया जया था कि मीनाज्ञी किशेट के साथ गाड़ी में बैठकर घूमती है। पिता मे गाड़ीवान को डॉटकर पूछा । गाड़ीवान ने कहा ९




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