दुनिया मेरी दृष्टि में | Duniya-meri Drishti Mein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) विज्ञान के कर्ता को ही अस्वीक्ृत कर रहे हैं तो इनके प्रमुख व्यक्ति भौतिकवाद न रदँ । जड़वाद के सम्बन्ध में में कहँगा कि उसकी शोकजनक' गलती इससे नहीं समुद्भूत है कि वह पराथिब-जीवन को इतना महत्व देता है--अपनी प्रगति के लिए भौतिक उपादानों एवं शारीरिक उद्योगं को इतनी प्रधानता देता है, किन्तु इस भ्रम से कि आत्मबाद मानवी शक्तियों का विधातक है और उसे पूर्णतया बहिष्कृत करने से पाथिव उन्नति का पथ अ्रधिक प्रशस्त होगा, जब कि प्रात्म-तत्व के ही कारण इनकी सार्थकता एवं महत्ता है । यदि जड़वाद, जो अपने वास्तविकतावाद पर नाज करता है, पूर्णतया वास्तविकतावाद होता तो वह्‌ वास्तविकता कै समस्त रूपों की सत्ता स्वीकृत करता, ग्रात्म-तत्व की भी और पुद्गल की भी श्रौर उनकी सत्ता के विभिन्न सोपानों की भी । और मैं यहाँ कहुँगा--शर्माजी मुझे क्षपया क्षमा करें--कि इस इन्द्रियानुभूतः जगत्‌ के भिथ्यास्व पर प्रत्यधिकं जोर देना उस महत्तम सत्ता के शाश्वत सत्य पर प्रकाश डालने की एक भयावह प्रणाली है, क्‍योंकि यह उस महामहिम फी दही इच्छा है वि उससे क्षुद्रमम प्राणियों को अस्तित्व का दान दिया । समस्त जड़वाद को अनुपयुक्‍त्त सिद्ध करने के लिए मानवता को निरन्तर यह्‌ कहना पड़ेगा कि उसके दो कर्तव्य हैं--एक संसारिक, दूस चिरन्तन और इस मर्त्यावास्त से ही दीनों का समारम्भ हौ जाना चाहिये। सांसारिक समृन्नति के लिए शाश्वत जीवन की गहन चिन्ता कोई भ्रवरोध नहीं है, अ्रपितु इसकी उत्कृष्ट-




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