तीर्थंकर महावीर भाग १ | Tirthkaar Mahavir Bhag 1

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Tirthkaar Mahavir Bhag 1 by जैनाचार्य श्री विजयेन्द्रसूरि - Jainacharya Shree Vijayendra Suri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाश्चात्य विद्वानों के ही अध्ययन और खौज का यह फल हुआ कि भारत में भी जैन-घमं के सम्बन्ध मेँ गौर भगवान्‌ महावीर के सम्बन्ध में प्रायः सभी भारतीय भावागों मे कितनी ही पुस्तके लिखी गयीं । मैंने सहायक-पन्यों की सूची में कुछ महावीर-चरित्रों के नाम दे दिये हैं । इतने महावीर-चरित्र के होने के वावजूद मुझे बहुत वर्षों से महावीर- चरित्र लिखने की प्रवल इच्छा रही। इसका कारण यह था कि, संस्कृत और प्राकृत तो आज का जनभाषा न रही और मूल धर्म-शास्त्रों में भगवान्‌' की जीवन कथा बिखरी पड़ी है। अतः मैं चाहता था कि हिन्दी में में एक ऐसा जीवन प्रस्तुत करूँ, जिसमें जहाँ एक ओोर ऐतिहासिक दृष्टि से विवेचन हो, बहीं शंका वाले स्थलों के समस्त प्रसंग एक स्थाम पर एकत्र हों । भगवान्‌ के जीवन में अपनी रुचि के ही काररण, पहले मने भगवानु के जन्मस्थान की खोज के सम्बन्ध में वैशाली! लिखी। फिर छदम्मस्थकालीन' विहार-स्थलों के सम्बन्ध में 'वीर-विहार-मीमांसा' प्रकाशित करायी । उनके गुजराती में द्वितीय संस्करण मी छपे | और, यह अब महावीर की जीवन- कथा का प्रथम खंड आपके हाथ में है। यह पुस्तक कसी वनी, यह तो पाठक ही जाने; पर मैं तो कहेंगा कि यदि आपकी एक शंका का भी समाधान इस पुस्तक से हुआ, अथवा जैन-शास्त्रों की ओर अपनी रुचि आक्षष्ट करने में किसी प्रकार यह पुस्तक सहायक रही, तो मैं कहूँगा कि मेरा नगण्य परिश्रम भी पूर्ण सफल रहा । प्रस्तुते पुस्तक को तैयार करने मे हमें जिनसे सहायता मिलौ उनका उल्लेख भी यहाँ आवश्यक है। श्री भोगीलाल लहेरचन्द की 'वसतति' भे रहकर. निविघ्नतापूरवंक मुके तीथकर महावीर का यह प्रथम भाग पूरा करने का अवसर मिला । यदि स्थान की यह सुविधा मुझे न मिली होती, तो सम्भवतः मेरे जीवन में यह कार्य पूरा न हो पाता 1 : मेरे इस साहित्यिक काम में मेरे उपदेश से श्री चिमनलाल मोहनलाल भवेरी, श्री वाडीलाल मनसुखलाल पारेख तथा श्री पोपटलाल भीखाचन्द झवेरी सदैव हर तरह से मेरी सहायता करते रहे । १




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