दो स्मृतियाँ | Do Ismartiya

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Do Ismartiya by गणपत चोपड़ा जैन - Ganpat Chopda Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ও कि देवी को দল चंढांवों होगा 1 एक बकरे को मारकर बलि छढाने से श्राप बच जायेंगे | हम बकरा ले जाते हैं और आपके सापने ही 'काद कर देवी को चढा' देते हैं ॥ किस्तूरचन्दजी से कहा: कि मुझे मृत्यु का भय नहीं है । मैं मझ था जीऊ मगर इस प्रकार किसी जीव का घातः नहीं कर सकता ॥ मेरा जीवछ बचाने के लिए बकरा नहीं मारता है ॥ वन्धश्चों 1 इसे कहते है धमपसरुणता ॥ स्वांके कारण व्यत्ति न जाने क्या-क्या धर्नदिक क्यः शझत्याचार कर लेता हैं। धर्म का मर्म समझने बाला, घर्मपरायण খুন हो संकट की घड़ी मे श्रपना घर्मं निभा सकता है । श्राप इस प्रस से घी किस्तुर चन्दजी की शक्ति शरीर घर्मवरायणत्ता को अच्छी तरह समभ गये होंगे ट ९ ॥ हलक हा ९ ५ ^ এ কি 28 উন दास्पत्य जीवन यहु तौ श्राप पहले-ही पढ चुड़े है. कि. भापज्ा विवाह १५६ साल की छोदी उम्र.में ही हो गया था । आपके दो पूत्र व एक पूत्री हुई ॥ जिनका चाख हमरा: गणेश, पन्‍चा थे भीखी घा) आए पल्दिये की मां से जादी जाती थी 1 शापको सन्‍्तान-छुछ प्रस्थायी ही मिला + काल ने किसी को झाठ महीने से, किसी को छः महीने उस लिया 1 फाय इतमे पर সী অন नहीं हुआ । आपको शादी किए सिर्फ १३ वर्ष हुए थे बि.से १६८० भोज वदी १ को कलने लपका सहाय ভীল लिया |




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