प्राकृतिक चिकित्सा - विधि | Prakarit Chikitsa-vidhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन ছু एनिमा, पानी, मिद्ठटी आदिका प्रयोग भी नियत प्रमाणमें करनेसे ही छाम दोता है। उसमें अतिस्क या असावधानी होनेसे शरीरकों छाम होनेडे बजाय ( कम प्रमाणमें क्‍यों न हो ) नुकसान हामेकी संभावना रहती है। कुछ उपचार ऐसे है, जिनका प्रयोग अमुक निश्चित परिस्थितिर्मे ही करना चादहिए। प्राकृतिक चिकित्सा विधिक प्रयोगकी मर्यादा और उपयोगिताका शान पाठककों भलीमाँति कराना ही इस पुस्तकका उद्देष्य है। 8९४३६ उपवासका प्रक़्रण इस पुस्तकम जोडा जा रहा है। पिउछे पाँच सात बर्षो्मे हमने छांटे उपयार्सोका अनुभव तथा अध्ययन किया दै । मरीर्जोको छोटे उपवासे भौ ठीक लाम द्वोता है। अल्प अवधिमें अधिऊसे अधिक हम पहुँचानेकी दृष्टिते उपवास चिकित्साका विश॑प स्थान है। चिकित्साकी अवधि कम करने तथा रोग दूर करनेम॑ भी उपवास चिकित्साका मुकाबलय ओर कांई चिकित्सा विधि नहीं कर सऊती | इसकी प्रतीति हमको क्रमश* शेने लगी । हमारी भ्रद्धा, विश्वास तथा अनुमव बढ़ता गया । गत ७ ८ मह्ठीनेमिं ईश्वर-झपासे हमने अबने चिकित्सालयमें जीण रोगियोंको दीध उपवास फरवाये | चिकित्सक तथा रोगी दोनोकी धडा तथा पिश्वासका मेल होनेपर दीघ उपवास भी सफ्ल हुए। रोगी १२ वर्ष, २० वर्षकी प्रीमारासे मुक्त होकर आनन्दित हुए और बदलेमें हमको अनमोल शान दे गये | हमें उपवासके मध्य तथा अन्तिम दिनेमिं कभी-कमी अति कठिन परिध्थितियोंका सामना करना पडा, लेक्नि भ्रद्धाकं कारण हम पार हुए । ३२५, ४५, ४८, ५० दिनोंतकके उपवास (मिर्ष पानीके ) यहाँ सफल हुए | इसका वणन समय आनेपर पाठकोंके सामने आयेगा। उपर्युक्त अनुभर्वोके कारण दो, चार, पोच, सात दिनक उपयासकी पात आसान माद्म होती टै । घरमें उठकर विवेकी पाठक उपवास कर




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