भारतीय वीरांगनाये प्रथम भाग | Bhartiya Veerangnaye Pratham Bhag

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Bhartiya Veerangnaye Pratham Bhag by राम सिंह वर्म्मा किशोर - Ram Singh Varmma Kishor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म सक्षात्‌ गगा तुम्हारे सामने एडी ्। तुम्हार प्रशंसनीय पातिवत देखकर मुझे अपार दं हुमा दै । तुप्त धन्य हो! शो, जल तेयार है। इतना बाहुकर भगवती गंगाने तत्क्षण अपनी शक्ति द्वारा चहीं पर जनकी एक धारा उत्पन्न कर दी। जलके प्रवाहित होतेही अनुलूयाने प्रसन्न दोकर अपना फमएडल भरा और भगवती गंगाके चरणोंमें गिरकर प्रणाम किया। भगवती गंगने आशीर्वाद विया । अनुपुषाने हाय जोक निवेदन क्िया--“भगवति | द्याकर एकवार मेरे भाश्रमफो मी पविश्र चनानेफा कष्ट करो। मेरे पतिदेव अनेक वर्षों के धाद आजही समाधिते ॐ रै) अच्छा होता, पट तुष उन्हें मी दृशन वैनेका कष्ट स्कार करतीं] तुग्दरे शेन फर हम लोग धन्य होगि इच्छाके न रहते हुए भी देवी गगाने सततीकी बात मान लो। मानने सिवा दूसरा फो माग भी तो न था। इधर भलुसूयाके न अनिसे জঙ্গি ऋषिको प्यालके कारण महान कष्ट शो रहा धा] थे मन-ही-मन नाना प्रकारकी कत्प- नाएँ कर रहे थे। इतमेमें अनुयूया भा पहुंची । अहुसूयाफे जल छेफर थाते ही उन्होंने विलखका कारण पूखा। उत्त मनुसृयनि देही नप्र शतम कहा-शनाथ | पहले जल ग्रहण कीजियेजतत्पए्चात्‌ विक्मबकां कारण নাজ गी । [9]




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