लोक कथा - गद्य खंड | Lok Katha - Gadya Khanda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका जगदीश पीयूष अवधी लोकसाहित्य के समग्र सर्वेक्षण के सन्दर्भ में अवधी लोककथाओं का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। लोककथाओं के सम्यक अध्ययन के बिना लोक-साहित्य का सर्वाग सर्वेक्षण अधूरा है क्योंकि लोककथाएँ लोकमानस की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्तियाँ हैं । लोककथाएँ लेक-मानव के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का संस्पर्श करती हुई उसके जीवनानुभवों की सम्यक्‌ व्याख्या करती है। लोकमानस के आचार-विचार खान-पान रीतिरिवाज रहन-सहन धार्मिक विश्वास आशा-निराशा सुख-दुख आदि का स्पष्ट प्रतिबिम्ब लोक कथाओं में स्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित होता है। लोककथाएँ क्या हैं? कहां से आई? इस प्रश्न का उत्तर अत्यन्त जटिल है। इसकी परिभाषा के रूप में हम कह सकते हैं कि ये कथाएँ मानव के भोले-भाले सरल र्दूगर हैं इनमें लोक जीवन का व्यापक चित्र उदुघाटित होता है। लोककथधाओं की परम्परा और उद्गम अत्यन्त प्राचीन है। ऋग्वेद में ऐसे अनेक सूकत प्राप्त होते है। जिनमें दो या तीन पात्रें में कथोपकथन पाया जाता है। ऋग्वेद में ऋषि शुनः शेप का प्रसिद्ध आख्यान उपलब्ध होता है। अपाला अत्रेयी के आदर्श नारी चरित्र का चित्रण सर्वप्रथम ऋग्वेद में ही प्राप्त होता है। च्यवन भार्गव और सुकन्या मानवी की कथा भी बड़े सुन्दर ढंग से ऋग्वेद में वर्णित है। ब्राह्मण ग्रन्थों मे भी अनेक कथाएँ उपलब्ध होती हैं। शतपथ ब्राह्मण में पुरु९वा और उर्वशी की कथा अत्यन्त प्रसिद्ध है। तांड्यब्राह्मण में च्यवन भार्गव और सुकन्या मानवी की कथा उपलब्ध होती है । ऐतरेय ब्राह्मण में शुनः शेप का आख्यान अत्यन्त प्रसिद्ध है। शाट्यायन ब्राह्मण में महर्षि वृश नामक पुरोहित के वैदिक कालीन महत्व का प्रतिपादन किया गया है। ब्राह्मण-ग्रंथों के पश्चात उपनिषदों में भी अनेक कथाओं का उल्लेख पाया जाता है। नचिकेता की सुप्रतिद्ध कथा कठोपनिषद का प्रधान वर्ण्य विषय है। अग्नि और पक्ष की कथा केनोपनिषद में वर्णित है। लोक कथाओं का सबसे प्राचीन संग्रह वृहद्‌ कथा है। जिसके लेखक गुणादूय थे । वृहट्कथा संस्कृत नाटककारों के लिए प्रारम्भ से ही उपजीव्य ग्रन्थ रहा है। महाकवि भास शूद्रक और हर्ष ने अपने नाटकों की कथावस्तु वृहत्‌कथा से ही प्राप्त किया है। वृहतकथा के तीन अनुवाद संस्कृत में उपलब्ध हैं - वृहत्‌कथा श्लोक संग्रह के रचयिता कुध स्वामी वृहत्‌कथा मज्जरी के रचयिता आचार्य क्षेमेन्द्र तथा कथा साहित्यसागर के रचियता सोमदेव हैं । इसी सन्दर्भ में संस्कृत में पंचतंत्र का स्थान भी सर्वोपरि है। इसका अनुवाद यूरोप की अनेक भाषाओं में हो चुका हैं। पंचतंत्र भारतीय कहानियों का सबसे मौलिक और प्राचीन ग्रन्थ माना जाता है। इसमें पांच भाग 4 तन्त्र हैं इसी से इसका नाम पंचतंत्र हैं। नीति सम्बन्धी कथाओं में पंचतंत्र के बाद हितोपदेश का नाम आता है। यह बड़ा ही लोकप्रिय ग्रन्थ है इसकी अधिकांश कथाएँ पंचतंत्र से ली गई हैं। वैताल पंचविंशतिका पच्चीस रोचक कहानियों का संस्कृत का रोचक संग्रह है। प्रत्येक कथा में 8- अवधी ग्रन्थावली खण्ड-5 ७ 17 डै




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